Saturday, January 22, 2022

हरियाणवी हास्य ग़ज़ल

थोड़ी देर की ख़ामोशियाँ भी परेशान कर देती थी 

क्या हुआ कुछ हुआ क्या की फ्रिक हो जाती थी 


इश्क़ की शुरुआत के ये दिन भी क्या दिन थे , अच्छा! 

अब तो ये है कि जितनी देर खामोशी उतना अच्छा 


ज़िक्र था जहान था जोश था खुमार था ज़लज़ला था  

हल्की सी खरोंच पर बन्दा आईसीयू उठा लाता था 


नयी नयी पहचान के ये दिन भी क्या दिन थे, छलकते थे ! 

अब तो ये है कि चल रहा है जो चल रहा चलने दे 


तारीफ़ों के पुल थे बाग गुलज़ार थे ख़्वाबों के 

मनाने रूठने की पतंगें  , मंझे उलझते थे जवाबों के 



नये दिनों की बात ,गये दिनों की बात भी क्या बात थी देखो !

अब तो अपनी खुद समझते बैठो देखते बैठो ठण्ड रखो ! 

No comments:

Post a Comment