मैं
चाहता हूं तुम्हें
या नहीं,
कह नहीं सकता ।
मैं बस तुम्हारा ही हूं
या नहीं ,
कह नहीं सकता ।
तुम्हारे एक कहने पर
दे दूंगा जान
या नहीं
कह नहीं सकता ।
यदि चाहो तुम
कोई आश्वासन ,कोई वादा
तो कह सकता हूं बस यही
कि
जो भी रहूंगा ,
जैसा भी रहूंगा ,
जितना भी रहूंगा ,
रखूंगा सम्मुख तुम्हारे
स्वयं को पूरा पूरा
बिना किसी तह और सिलवट के !
शेष तुम्हारी इच्छा . . . .. . .!
संवेदनशील,बहुत बढ़िया.
ReplyDelete"रखूंगा सम्मुख तुम्हारे
ReplyDeleteस्वयं को पूरा पूरा
बिना किसी तह और सिलवट के !"
गर आप यह करने लगे
तो राह ही खुल जायेगी...
प्यारी कविता .
bahut sundar
ReplyDeleteबहुत साफ़ सुथरी और ईमानदार कविता और तुम्हारा लेखन भी बहुत अच्छा
ReplyDeleteआर्जव भाई तुमहारा स्वागत है और इसी तरह लिखते रहो, मेरी शुभकामनाएं।
हिंदी लिखाड़ियों की दुनिया में आपका स्वागत। अच्छा लिखे। खूब लिखे। हजारों शुभकामनांए।
ReplyDeleteबहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeleteअत्यन्त सुंदर रचना
ReplyDeleteआपका लिखने पढने की दुनिया में स्वागत है
मेरे ब्लॉग पर पधारे स्नेहिल आमंत्रण है
वाह क्या खूब लिखा, सुंदर कविता
ReplyDeleteAti sinder
ReplyDeleteकलम से जोड्कर भाव अपने
ये कौनसा समंदर बनाया है
बूंद-बूंद की अभिव्यक्ति ने
सुंदर रचना संसार बनाया है
भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
लिखते रहिए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
http://zindagilive08.blogspot.com
आर्ट के लिए देखें
http://chitrasansar.blogspot.com
maza aa gaya bhai kya khoobsurat entry mari hai....
ReplyDeleteहाँ यहीं से तुम्हे पहचान मिली है...... मानता हूँ.
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