Wednesday, January 19, 2022

माधवी

 थमनें दो नये नये परिचय की

उन्मादी गरज बरस 

धुन्ध धुएं से छाये 

आवेगों की स्नेहिल बौछारों को ! 


तुम्हारे मन की प्रेमिल शिशुता

रोप आयी थी कुछ मेरे अन्दर 

तुम्हारे देह व्यष्टि की मादक मोदक कोमलता 

मेरे तन में कुछ छॊड़ आयी थी

धीरे धीरे 

उन बीजों को जगने दो

कविता बनने दो 

मेरे हिय के परिजाती वन में 

अपने को उगने दो ! 


फिर तुम 

निर्मल एकाकी वन प्रान्तर का झरना बनना,

शीतल आत्मन्यस्त मन्द धवल !  

मैं बिछ जाऊंगा बन प्रस्तर की विशाल शिलाएं 

आसपास तुम्हारे.   

सुनूंगा अपने ऊपर से 

तुम्हारे गुजरने का 

अनहद अहर्निश संगीत ! 


तुम बनना फिर चिड़िया 

गीत गाती प्रेम-सुधि केबोधि के सुदूर नीले जंगलों में 

मैं वृक्ष बंनूगा  देवदार का 

तुम्हारे मधु-गान को 

सूरज की धूप सा सोखता रहूँगा ! 


तुम आना मेरे पास 

किसी वृक्ष पर फूल की तरह 

हम दोनों 

अपना होना मिलाकर एक में 

दें आएँगें 

किसी और धरती को 

एक स्वप्न की तरह  

1 comment:

  1. You are a commendable writer and it's lovely how you experience love. :)

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