खुद ही सब कुछ छोड़ आये हैं
फिर भी एक कतरा बेजुबान सी
उम्मीद है कहीं कि
वहां से आवाज आयेगी
फिर कोई !
सबको पहचानते थे बखूबी
रंग रंग से वाकिफ थे उनके
फिर भी सबके सामने कर दिया इन्कार
किसी एक को भी पहचानने से
(वह ’एक’ ही ’कई’ होकर आया था !)
तब भी एक बात बेबात सी है मन में
कि वे आयेंगे बुलाने हमको
फिर कभी !
दर्द को मांगने
लब्ज आया तो था
हमने गुरूर में कह दिया, जाओ !
तुम्हारे बस की बात नहीं ,
मिलेगें,
फिर कभी !
दर्द को मांगने
ReplyDeleteलब्ज आया तो था
हमने गुरूर में कह दिया, जाओ !
तुम्हारे बस की बात नहीं ,
मिलेगें,
फिर कभी !
अच्छा लगा...काफ़ी अच्छा...
bahut sundar rachna...pahli baar aapke blog par aai hun ...bahut achha lga..
ReplyDeleteएहसास का यह धरोहर फिर मिलने पर काम आयेगा
ReplyDeletewow thatz really a beautiful piece of writing !!
ReplyDeleteLast verse was fantastically crafted.
सुंदर.
ReplyDeleteघुघूती बासूती
@खुद ही सब कुछ छोड़ आये हैं
ReplyDeleteफिर भी एक कतरा बेजुबान सी
उम्मीद है कहीं कि
वहां से आवाज आयेगी
फिर कोई !
...phir vahi jaanlevaa ummeed !!!!!
बहुत सुन्दर !
ReplyDeletepehla stanza samajh me nhi aaya k aap kehna kya chahte hai?lekin dusra aur khaskar 3 stanza behtrin hai.thank u.
ReplyDeleteमिले वो अजनबी बनकर तो रफ़'अत
ReplyDeleteज़माने का चलन याद आ गया है ... सुन्दर!
बहुत सुंदर मन के भाव ...
ReplyDeleteप्रभावित करती रचना .