अन्ना को समय ने रचा है ।
वह बहरा नहीं है ।
संस्कृतियों के मेले से छांटकर
समय
अपनी उत्तुंग प्राचीर पर
टांकता है
अव्यय मूल्यों के
कुछ क्षीण भित्ति-चित्र !
समुदाय के सामूहिक बौद्धिक नैतिक
ह्रास के प्रतिपक्ष में
अन्वेषित की जाती है
विनय व अहिंसा मण्डित
पुनर्नवा आस्था !
अन्ना को समय ने रचा है ।
वह बहरा नहीं है ।
तृषा व्योमोह में
स्वत्व के सत्व -स्खलन से
रचे जा रहे
विकृत भ्रटाचार के
व्यभिचारी विश्वकोश खण्डन में
सतत लिपि बध्द की जाती है
आत्म प्रतिबध्द,
विनिर्माण हेतु शतधा आबद्ध,
विशद व प्रासंगिक नैतिक मूल्यों की
निस्पृह संहिताएं !
अन्ना को समय ने रचा है ।
वह बहरा नहीं है ।
अन्ना पर एक प्रशस्त काव्य दृष्टि!
ReplyDelete....समय बहरा नहीं है.
ReplyDeleteवास्तव में समय बहरा नहीं है. वह सुनता है हर पुकार जो सुनी जानी चाहिए.
सही है....
ReplyDeleteअन्ना को समय ने रचा है ।
वह बहरा नहीं है ।
...बहुत दिनो के बाद बहुत बधाई।
Very beautiful !! Splendid !!!
ReplyDeleteअन्ना को समय ने रचा है ।
ReplyDeleteवह बहरा नहीं है ............MUJHE IS KAVITA ME BAS ITNA HI SAMAJH ME AAYA......PADH KAR MAZA AAYA.
सहज सरल सतत…….WAH KAVITA SAHAJ SARAL AUR SATAT HI HONI CHAHIYE.BAHUT ACHHI KAVITA BHAIYAAAAAA.
ReplyDeleteतबियत तो ठीक है! आप हैं कहाँ...? अरविंद मिश्र जी से फोन न0 लेकर भी बात करने का प्रयास किया लेकिन स्विच ऑफ ही बता रहा है।
ReplyDeleteHa bhaiya aaapne sahi kaha...Anna ko samay ne hi wo anna banaya jise aaj sari duniya anna k nam se janti hai.
ReplyDeleteसंस्कृतियों के मेले से छांटकर
ReplyDeleteसमय
अपनी उत्तुंग प्राचीर पर
टांकता है
अव्यय मूल्यों के
कुछ क्षीण भित्ति-चित्र !
WAH BAHUT HI GAHAN ABHIVYAKTI...........
आपकी कविता में रस है
ReplyDelete