Friday, January 14, 2022

जीवाश्म

किसी लोककथा में फँसी रह गयी वेदना 

हज़ारों वर्ष पुरानी एक प्रतिमा के मन की स्मृतियाँ 

बादलों के पुराने जन्म 

जीवाश्मों के स्वप्न 


इनमें मेरी भाषा है 

मेरे ख़त्म हो जाने के बाद बची रह गई 


कई बार कहेगी वह मुझे 

बिना मेरे जाने 

बिना मेरे हुए 



एक झरने में पानी बनूँगा मैं 

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