कहॊ !
राग की यह वैजयन्ती
तुम कहां से लहा लाये ?
सजाये पलाश-पल्लव , गूंथ माला, फेर दी
नेह विजड़ित मन मेरा , बन मुर्तिका , सज गया !
दूर हो मुझसे , बना चन्दन , घिसा मुझको
फिर मुझी पर पोत सारा , चन्दन गन्ध मादल कर दिया !
दी थाल वेदना की ,सजाने को आंसुओं के मौन दीप
फिर फेर एक दुलार पूरित करूणार्द्र दृष्टि, ज्योतित सभी को कर दिया !
थे विशद विप्लव , संवेग-वात्याचक्र-प्रकम्पित सत्व
गहन आह्लाद में बोर तुमनें, अखण्ड - प्रशान्ति - यज्ञ ॠत्विक बना दिया !
कहो !
इस घने अवसाद में यह
जड़ी बूटी कहां पाये ?
राग की यह वैजयन्ती
तुम कहां से लहा लाये ?
कहो !
ReplyDeleteइस घने अवसाद में यह
जड़ी बूटी कहां पाये ?
waah...bahut khub
बहुत सुन्दर रचना....
ReplyDeleteभावों को साहित्यिक शब्दों से अलंकृत कर दिया आपने। सुन्दर!
ReplyDeleteएक पूर्ण कविता ! एक बहुत ही सुन्दर कविता !
ReplyDeleteकथ्य की नवीनता मन को लुभाती है. परिष्कृत शब्दों का सटीक प्रयोग कथ्य को और चटकीला करता है.
"लहा लाये"...यह ऐसा शब्द है जिसका बिल्कुल सटीक पर्याय खड़ी हिंदी या संस्कृत में न मिल सकेगा. शायद इसीलिये आपने इस आंचलिक शब्द का प्रयोग किया होगा. यदि कोई पर्याय होगा भी तो वह बात को उस प्रभावी ढंग से कहने में समर्थ न हो सकेगा. या यूँ कह लें कि हम स्वयं को उस तरह उससे जोड़ नहीं पायेंगे.
आपकी हर नयी कविता आपकी सोच और अनुभूतियों की प्रौढ़ता व्यक्त करती है. पिछली दोनों ही कविताएँ पढ़कर बहुत प्रसन्नता हुई.
कुछ परिष्कृत शब्दों का अर्थ जानने के लिए शब्दकोश का सहारा भी लेना पड़ा. :) अच्छा होगा यदि उन शब्दों का अर्थ नीचे लिख दिया करें.
अहहहहहाहा....ऐसे शुद्ध अनूठे शब्द और भाव अब कहाँ पढने को मिलते हैं...अप्रतिम रचना...बधाई...
ReplyDeleteनीरज
कहो !
ReplyDeleteइस घने अवसाद में यह
जड़ी बूटी कहां पाये ?
राग की यह वैजयन्ती
तुम कहां से लहा लाये ...
आज के माहॉल में यह वैजयन्ती ढूँढना सरल तो नही है ... शशक्त रचना है ..
laha laye...ka koi javab nahin. satiik baith raha hai...isase achhashabd shayad na mile doosra.
ReplyDeletetabiyat mast ho gai. banarasii pan to aana hii tha ek n ek din..
sambhav hai bhavishy men dilli darbaar men baithkar koi kahe..."kavy kii yah pratibha banaras se laha laye..!"
prataap narayan singh kii baat se sahamt hoon ..
इस घने अवसाद में यह
ReplyDeleteजड़ी बूटी कहां पाये ?
राग की यह वैजयन्ती
तुम कहां से लहा लाये ...
Awesome !
mesmerizing creation..Thanks.
कहो !
ReplyDeleteइस घने अवसाद में यह
जड़ी बूटी कहां पाये ?
बहुत खूब .. अवसाद की अवस्था ही तो जड़ी-बूटियों की खोज के लिये कारक हैं
नीरज जी के कथन को ही मेरा कथन समझो...
ReplyDeleteतुम्हारे प्रयोग किये गये कई शब्द मेरे लिये तो एकदम नये है.. उनके अर्थ ढूढता हू.. वैसे अच्छा रहता कि उनके अर्थ तुम ही दे देते जैसे गज़ल लिखते वक्त उर्दू के शब्दो के आम बोल्चाल के मायने भी दे दिये जाते है..
तुम बहुत सुन्दर लिखते हो और उतना ही सुन्दर सोचते हो..
वाह आर्जव ,आज ऐसे ही अनायास कुछ कवितायें पढने को मन हुआ तो यहाँ तक चला आया और निराश नहीं हुआ!
ReplyDeleteवाह
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