1.
. . . .श्श्श्श्श्श्श्श्श . . .चुप ! ! ! !
घात लगाये ,
छत मुड़ेर पर,
अभी
टिकुरी बैठी है बिल्ली . . .. . .।
2.
शोर न करो,
धीरे धीरे आओ
छत पर फैला गेहूं
कुचुर कुचुर खा रही है
सजग गिलहरी ।
. . . .श्श्श्श्श्श्श्श्श . . .चुप ! ! ! !
घात लगाये ,
छत मुड़ेर पर,
अभी
टिकुरी बैठी है बिल्ली . . .. . .।
2.
शोर न करो,
धीरे धीरे आओ
छत पर फैला गेहूं
कुचुर कुचुर खा रही है
सजग गिलहरी ।
ऐसा भी लिख रहे हो आजकल । ठीक ही है, इसमें छुपा कोई अर्थ हम निकाल लेंगे ।
ReplyDeleteबिल्ली और गिलहरी के लिए श्श्श्श् ... यानि चुप्पी।
ReplyDeletesavdhan raho koi hai.........
ReplyDeleteश्श्श्श्श्श्श्श्श . . .चुप ! ! ! !
ReplyDeleteघात लगाये ,
छत मुड़ेर पर,
अभी
टिकुरी बैठी है बिल्ली . . .. . .।
वाह....बहुत खूब....बिलकुल अलग हट के एक नयी पहचान के साथ आये हैं आप....!!
भाई , बिम्बों में कही गयी पूरी कविता सर के ऊपर से निकल गयी.
ReplyDeleteइसे समझने के लिए तो कुंजी का सहारा लेना पड़ेगा.