Saturday, April 4, 2009

चाहना और होना

चाहने और होने में बहुत अन्तर है !

बहुत कम ही यह होता है कि
“चाहना” “होने” की तरफ पहला कदम हो!

अक्सर चाहना अपने जनमने के कुछ समय बाद ही
आंसू गैस के एक गोले सा फटता है
और यथार्थ में ही कुछ ऎसा घोल देता है
कि उसकी यथार्थता लगभग समाप्त हो जाती है ।

हम एक आभास को ही सच मान लेते हैं
क्योंकि तब तक यह चाहना
हमें अपने उस अन्तिम होने का
एक सुन्दर व सस्ता विकल्‍प दे चुका होता है !

5 comments:

  1. काश चाहना होना भी होता ! बढ़िया कविता लिखी है।
    घुघूती बासूती

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  2. प्रभावित करने वाली कविता!

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  3. हम एक आभास को ही सच मान लेते हैं
    क्योंकि तब तक यह चाहना
    हमें अपने उस अन्तिम होने का
    एक सुन्दर व सस्ता विकल्‍प दे चुका होता है !

    एक सुन्दर दार्शनिक विचार !!!

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