मन भी कितनी अद्भुत चीज है ! इसकी तो माया ही निराली है ! बिलकुल एक छोटे चंचल बच्चे सा हठी , उद्धत, व मूलतः निश्छ्ल ! किसी भी ऐसे मामले में जहां थोड़ा सा भी सुख या आनन्द मिलने की संभावना हो वहां यदि मेरी हां तो इसकी ना ! ! यदि मेरी ना तो इसकी हां ! ! मैं कहूं छोड़ दो तो वह कहे ले लो ! ! मैं चाहूं कि ले लूं तो वह बोले अब छोड़ो भी !!! मतलब बहुत कम ही ऐसे शुभ व मंगलमय अवसर आते हैं जब दोनों की हां एक साथ होती है ।
वैसे मन एक अच्छा लड़का है । वह बुरा नहीं है । किताबों की बहुत सारी बातें पूरी तरह ठीक नहीं है । बहुत बार वह हमें बस “आदतन” परेशान करता है । हमसे विपरीत जाने में, हमें परेशान करने में, व्यवस्थित चीजें बिखेरने में, तोड़—फोड़ करने में, बेमतलब के उपद्रव रचने में, इधर उधर कूदने फांदने में बहुत बार उसे भी वस्तुतः कोई मजा नहीं आता । लेकिन फिर भी वह यह सब करता रहता है बस आदतन । गति तो उसका स्वभाव ही है !किन्तु दौड़ने के लिये पटरी के रूप में वह आदतॊं को उपयोग में लाता है । और निस्संदेह ही आदतों के बननें या बिगड़ने की जिम्मेदारी तो हम पर ही है ।
अनायास एकदा कहीं पर मन को कुछ सुख मिल जाता है । फिर वह उस सुख को सायास दोहरना चाहता है । बार बार उधर ही दौड़ता है ।किन्तु बहुत ही कम बार ……या लगभग नहीं ही.....वह दुबारा उस अप्रत्याशित सुख को पकड़ पाता है………तथापि आदतन दौड़ता ही रहता है……..उस प्रथम सुख की एक मात्र स्मृति को कसकर धरे हुए।
वैसे मन एक अच्छा लड़का है । वह बुरा नहीं है । किताबों की बहुत सारी बातें पूरी तरह ठीक नहीं है । बहुत बार वह हमें बस “आदतन” परेशान करता है । हमसे विपरीत जाने में, हमें परेशान करने में, व्यवस्थित चीजें बिखेरने में, तोड़—फोड़ करने में, बेमतलब के उपद्रव रचने में, इधर उधर कूदने फांदने में बहुत बार उसे भी वस्तुतः कोई मजा नहीं आता । लेकिन फिर भी वह यह सब करता रहता है बस आदतन । गति तो उसका स्वभाव ही है !किन्तु दौड़ने के लिये पटरी के रूप में वह आदतॊं को उपयोग में लाता है । और निस्संदेह ही आदतों के बननें या बिगड़ने की जिम्मेदारी तो हम पर ही है ।
अनायास एकदा कहीं पर मन को कुछ सुख मिल जाता है । फिर वह उस सुख को सायास दोहरना चाहता है । बार बार उधर ही दौड़ता है ।किन्तु बहुत ही कम बार ……या लगभग नहीं ही.....वह दुबारा उस अप्रत्याशित सुख को पकड़ पाता है………तथापि आदतन दौड़ता ही रहता है……..उस प्रथम सुख की एक मात्र स्मृति को कसकर धरे हुए।
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ReplyDeletearre aisa kyon kehte hai bhaai??...itni achhi soch hai aur har koi isse judega bhi....
ReplyDeleteमन को शांत करनेका केवल एक उम्दा उपाय मिला है हमें आज तक: जब मन अपनी आदतन चंचलता पर उतर आए तो उसे रोको मत. उसे केवल निरखो. जैसे किसी शैतानी करते हुए छोटे बच्चे को उसके पिता निरखते है. उससे रोको या तोको मत. केवल 'ओब्सर्व' करो. खुद ही मन शांत हो जाएगा.
ReplyDeleteयही उपाय दर को दूर करने में भी बड़ा काम आता है. फ्रैंक हर्बर्ट की विज्ञानं कथा Dune में यह मंत्र पढ़ा था पहली बार:
I must not fear.
Fear is the mind-killer.
Fear is the little-death that brings total obliteration.
I will face my fear.
I will permit it to pass over me and through me.
And when it has gone past I will turn the inner eye to see its path.
Where the fear has gone there will be nothing.
Only I will remain.