जानता हूं
यह रास्ता कहीं नहीं जाता
फिर भी चल रहा हूं ।
जानता हूं
आगे कुछ नहीं है
फिर भी इसी पर
ढल रहा हूं ।
है अस्वीकार का साहस ।
प्रतिरोध की शक्ति है ।
जानता हूं हासिल हर जोड़ का
शून्य है
फिर भी
स्वयं को कर
एक विलम्बित मौन-सा
इस ही राह पर
बिछ रहा हूं………..
जानता हूं पर चल रहा हूं ………
बहुत सुन्दर रचना । आभार
ReplyDeleteसच...आप बहुत कुछ जानते हैं....
ReplyDeleteतब तो पहेलियाँ भी जानते होंगे?
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विलुप्त होती... .....नानी-दादी की पहेलियाँ.........परिणाम..... ( लड्डू बोलता है....इंजीनियर के दिल से....)
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_24.html
इस ढींठ मुद्रा के कारण क्या हैं आर्य ?
ReplyDeleteकेहि कारन ?
बहुत बढ़िया..चलते रहो. बढ़िया कविता.
ReplyDeleteजानता हूं हासिल हर जोड़ का
ReplyDeleteशून्य है
पर शून्य से चलकर शून्य तक पहुँचने के बीच सभी संख्याएँ हैं
सुन्दर अभिव्यक्ति
अनजाने रास्ते पर चलना तो वीरता है मगर जान बूझकर वह मार्ग चुनना जो कहीं नहीं जाता.. सिर्फ भावुकता है और यह जीवन यथार्थ की धरातल पर ही टिका रह सकता है।
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