ताजे नए
हरे पत्तों में , ,,
खूब मल कर
मुंह धोयी
और भी चटकार
गोरी हो ली जैसे ................
छोटे सफेद
गमकते फूलों
की लड़ियों से
गढ़ी
नीक नीक , ढेर -सी
चांदी की बाली ,,,,,,,,,
और अब
अंग अंग
धारे बैठी है
जोहती बाट
पहली मद्धिम बरसात की ! ! !
मै तो निरखूं
तुम्हें ही
ओ अकेली ! विलग, मुदिता
भरा बदन ,
गाढ़ मन ,
क्वारी नीम की डंठल !
मै तो निरखूं
ReplyDeleteतुम्हें ही
ओ अकेली ! विलग, मुदिता
भरा बदन ,
गाढ़ मन ,
क्वारी नीम की डंठल !
BAHUT KUHUB
SHEKHAR KUMAWAT
http://kavyawani.blogspot.com/
वाह सहज टटकी कविता !
ReplyDeleteक्वारी नीम की डंठल !
ReplyDeleteक्या बात है ! बहुत सुन्दर रचना
सुंदर ! बहुत सुंदर !
ReplyDelete---मै तुम्हारे ब्लाग का प्रशंसक बना लेकिन इन दो कविताओं का मुझे पता ही नहीं चला ! मेरे ब्लाग में तुम्हारी एक वर्ष पहले की कविताएँ ही बता रहा है !!
व्यस्ततावश इधर कुछ लिखना- पढ़ना नहीं हो पा रहा था. कई दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया तो लगा कि अपने गाँव के बांस की झुरमुटों में पहुँच गया हूँ. बहुत सुन्दर सजा है.
ReplyDeleteकविता हमेशा की तरह ही बहुत सुन्दर है. पढ़कर मन वहीं ठिठक गया कुछ देर के लिए.
क्वांरी नीम की डंठल अब देख पाया। बहुत खूब!
ReplyDeleteहाय मैं मर जावाँ
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