चलूं
आज दिनॊं बाद
लिखूं कुछ !
कॊई कविता !
हेरूं
मन को
पुरूं
गेहूं के टूण –सी
छोटी
गैरजरूरी
बातों के
टूटॆ धागे !
शब्दों को धोऊं,
पॊछूं
बांधू उनकॊ
धागे में
भावॊं के जुलहे की पूंछ में
टांकू उसे
छोड़ू उसे
भागे वह
द्वारे द्वारे
फूले फूले
नदी किनारे
तीरे तीरे
दौड़ू मैं भी
पीछे पीछे ! !
आज दिनों बाद !
गेहूं के टूंड हल्की सी चुभन भी लिए होते हैं आर्जव ध्यान रहे !
ReplyDeleteआर्जव के साथ सहज सरल ’सतत' जुड़ना सुखकर रहा !
ReplyDeleteब्लॉगर की सुविधा का खूब उपयोग किया तुमने ! बेहतर टेम्पलेट !
कविता पढ़ रहा हूँ, पढ़ लूँ !
कल मैंने भी 'दिनों के बाद' रचा और तुमने भी !
ReplyDeleteनदी किनारे यूँ सहज सरल दौड़ना तो मुझे भी बुला लेना :)
Bahut Bhadiya.
ReplyDeleteLAWAAB RACHAA
ReplyDeletebahut sahaj ..bahut masoom..bahut sundar likha hai apne...
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