अभी रुको थोड़ी देर ।
धैर्य धरो ।
आने दो वे मुहूर्त
जिनमें तुम्हारे
अन्तर्जगत
और
वाह्यजगत
के सब भेद
मिट जांय ।
तब तुम
अपने को कवि कहना ।
मैं तुम्हारे चरण धोकर पियूगां
और
सभ्यता समय के पथ पर
अपनी गति के बारे में
तुम्हारे इंगित की बाट जोहेगी ।
धैर्य धरो ।
आने दो वे मुहूर्त
जिनमें तुम्हारे
अन्तर्जगत
और
वाह्यजगत
के सब भेद
मिट जांय ।
तब तुम
अपने को कवि कहना ।
मैं तुम्हारे चरण धोकर पियूगां
और
सभ्यता समय के पथ पर
अपनी गति के बारे में
तुम्हारे इंगित की बाट जोहेगी ।
सभ्यता समय के पथ पर
ReplyDeleteअपनी गति के बारे में
तुम्हारे इंगित की बाट जोहेगी ।
सच कहा . वास्तव में कवि तो वही थे जिनकी सोच सभ्यता को दिशा निर्देश देती थी .
बहुत गूढ़ रहस्य छिपे हैं
ReplyDelete----
गुलाबी कोंपलें
चाँद, बादल और शाम
मतलब तो अबूझ है. कितने मुहूर्त चाहियें, क्या एक दुर्लभ क्षण काफ़ी नहीं?
ReplyDeleteकविता अन्तर्जगत और बाह्य जगत के सूक्ष्म संकेतों को प्रकट ही तो करती है . इस एकतान परिस्थिति को यदि कवि समझ पाता तो कविता में निरन्तर सत्य और सुन्दर की खोज नहीं कर रहा होता.
बेहतरीन प्रस्तुति सदैव आपके ब्लॉग आकर ताजगी महसूस होती है
ReplyDeleteअच्छा लगा लेकिन बात मेरी कुछ समझ कुछ समझ में नहीं आई .
ReplyDeleteसभ्यता समय के पथ पर
अपनी गति के बारे में
तुम्हारे इंगित की बाट जोहेगी ।
जरा समझाने की कोशिश करिए .