आज मुझसे
कहा तुमने
कि
“बहुत अच्छे” ।
तो
जरूरी नहीं
कि कहूं ही मैं तुमसे
“धन्यवाद” ।
क्यॊंकि
कभी अगर फिर
कहोगे तुम
“कमीने”
तो निश्चित ही
तुम्हें पीटकर
अपना वक्त जाया करने के बारे में
मैं नहीं सोचूगां ।
दरसल , कल ही एक जगह सुना है मैंने
कि नौसेना के कुछ परमाणु वाहक पोत
परावर्तित करने के बजाय सोख लेते है
राडार की खॊजी तरंगों को ।
कहा तुमने
कि
“बहुत अच्छे” ।
तो
जरूरी नहीं
कि कहूं ही मैं तुमसे
“धन्यवाद” ।
क्यॊंकि
कभी अगर फिर
कहोगे तुम
“कमीने”
तो निश्चित ही
तुम्हें पीटकर
अपना वक्त जाया करने के बारे में
मैं नहीं सोचूगां ।
दरसल , कल ही एक जगह सुना है मैंने
कि नौसेना के कुछ परमाणु वाहक पोत
परावर्तित करने के बजाय सोख लेते है
राडार की खॊजी तरंगों को ।
आर्जव बहुत सुन्दर बात कही
ReplyDelete---
चाँद, बादल और शाम
विचार उत्तम है !!!
ReplyDeleteनौसेना के युद्ध पोत के बारे में भले ही कल सुना हो परन्तु बुद्ध के बारे में तो पलहे से ही अवगत रहे होगे.
फर्क इतना है कि वहां परावर्तन सिर्फ एक ही तरह का होता था.
वाह...वाह...आर्जव जी क्या कविता लिखी है आपने...सीधे सादे शब्दों में गहरी बात...वाह.
ReplyDeleteनीरज
छोटे लफ्जों में सुंदर बात कह दी है...
ReplyDeleteबहुत अच्छे....!
ReplyDeleteक्या यार अभिषेक क्या लिखते हो तुम्हारी कविता तो पूरी तरह समाज के परावर्तन स्वाभाव पर आधारित है ! abhishek dubey
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