Wednesday, November 24, 2010

अरे प्यारे भगवान जी !

(जीवन , मृत्यु , प्रेम , संवेदनाएं , विचार इत्यादि ही कविता की मुख्य विषयवस्तु क्यों हॊ ? क्या ठोस  वैज्ञानिक तथ्य व प्रक्रियायें कविता का विषय नहीं हो सकती ? मेरा मन कहता है क्यॊं नहीं हो सकती ? तो परिणाम स्वरूप यह कविता -----)


अरे प्यारे भगवान जी !
कहां से किया तुमने बी. टॆक.
और की
टेक्नालाजी की इतनी पढ़ाई
कि बना सके
यह  जबरदस्त पृथ्वी !!!


मैं तो हैरान हूं
मैं तो परेशान हूं
छत पर खड़े हो कर देखता हूं आसमान
देखता हूं-- स्ट्रेटॊस्फीयर , मेजोस्फीयर , आयनोस्फीयर ,
देखता हूं यह संख्याओं की औकात नापता अनन्तः विस्तार ।



मन भुनभुनाता है अपने आप में ही सोचकर
तुम्हारी यह
हजारों विचित्र व महीन अनवरत प्रक्रियाओं को
चुपचाप इतनी सरलता से
निष्प्रयास अन्जाम देती
केमिस्ट्री !


सतह से पन्द्रह किलोमीटर ही ऊपर
क्षोभमण्डल में तापमान का इतना घटाव ,
यह माइनस सिक्स्टी डिग्री का टेम्परेचर !!!
फिर पचास किलोमीटर ऊपर समताप मण्डल में
ऋण पांच से पांच डिग्री का बढ़ाव ! ! !
फिर इसी तरह अस्सी किलोमीटर पर
ऋण एक सौ दस डिग्रीसेन्टीग्रेट
और चार सौ किलोमीटर यानी आयनोस्फीयर के
उपरी भाग में
धड़ाम से एक हजार डिग्री सेन्टीग्रेट ! ! !


क्या बात है !
विचित्र बात है !
सोचता हूं पगलाता हूं !




यह ठीक है कि
समताप मण्डल में
ओजोन गैस के गलियारे हैं
और सोखकर पराबैगनी विकिरण
ओजोन बढ़ा देती है ताप यहां !! !


यह भी ठीक है कि
आयनन मण्डल में
यही थेथर पराबैगनी किरणें
बेचारे परमाणुओं के सर फोड़ फोड़
कर देती हैं उन्हें आयनित
और इन उष्माक्षेपी अभिक्रियाओं से
निकली उष्मा से
बौरा जाता है आयननमण्डल ! ! !



लेकिन
मेरे प्यारे भगवान जी ! !
ये इतना जबरदस्त अरेन्जमेंट
हुआ कैसे आपसे
कि एक पूरी बड़ी सी लैब ही
फैला डाली इस बेचारी
आज्ञाकारी   पृथ्वी के आसपास ! ! !




जरा कहो तो !
कुछ बताओ तो !


ट्रेड क्या था तुम्हारा ? ? ?
आयनोस्फीयर की व्यवस्था देखकर तो यही लगता है
कि जरूर तुम
ईसी  ब्रान्च से रहे होगे !
नहीं तो कैसे बांटते तुम इस पूरे मण्डल को
डी , ई वन , ई टू , एफ वन ,एफ टू एवं जी परतों में !
कैसे तुम निर्धारित करते कि
डी रिफ्लेक्ट करेगा लांग रेडियेशन वेव्स
ई वन , ई टू मिडियम रेडियेशन वेव्स
एफ वन ,एफ टू शार्ट रेडियेशन वेव्स
व जी बचा खुचा सब !



यह इतना कठिन निर्धारण ?
हर तरंग के लिये अलग अलग ?
हमने तो सोचा था कि
हम सबके लिये
बस यह एक चुल्ली सा मन
और उसमें उछलने वाली
कुछ टिड्डी जैसी भावनाएं बनाकर
इन्हें  उलझे रहने के लिये
कुछ किताबें व
दो चम्मच प्यार देकर
तुम सेफ मॊड में पड़े
आराम कर रहे होगे !




लेकिन नहीं
श्योर हूं मैं
कि खूब मन से की है तुमने
तकनीकी और विज्ञान   की
जबरदस्त पढ़ायी
व चिति के लास्य से निःसृत
इस विशद प्रकृति के
समस्त प्राकृतिक संसाधनों ,
इसके जीवनदायी, निर्व्याज सौन्दर्यभूषित
शस्य श्यामल , हेम आप्लावित
उत्तुंग गिरि शिखर , कन्दरा , गर्त
गुह्य गह्वर
तथा मूर्तिमान रहस्य , इस
गूढ़, असीम , शून्य व्योम के
प्रत्येक सौष्ठव , प्रत्येक सौन्दर्य
व प्रत्येक रहस्य के पीछॆ
खूब ठीक से रचा है
पूरी तरह समझा जा सकने वाला
एक निश्चित व निर्धारित पैटर्न !

6 comments:

  1. अनूठे व सार्थक बिंब के सहारे कविता की शुरूवात जबरजदस्त है...बीच में मुझ जैसे अविज्ञानी को उलझा देती है...अंत सार्थक है।

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  2. अच्छा प्रयास है.

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  3. हम मापते, जान लेने का एहसास पाले, ढाई आखर भी नहीं पढ़ पाते.

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  4. @Rahul jii ......... जी ....बिलकुल !

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  5. कविता - जैसे कोई वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशाला में सुन्दरम् को माध्यम बना कर अनुसंधान कर रहा रहा हो !

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