Monday, February 16, 2009

परस

छुआ तुमने!!!

न जाने क्यों
भर आयी आंखें
और चुपचाप बह चले
एक दो गीले कन . ......

अश्रुपूरित नयन, विगलित मन
मैं बस विलोकता रहा तुम्हें , विनत.......

10 comments:

  1. न जाने क्यों
    भर आयी आंखें
    और चुपचाप बह चले
    एक दो गीले कन . ......
    बहुत सुंदर रचना है ...बधाई

    ReplyDelete
  2. bhaut sundar shabd bhav

    ReplyDelete
  3. बहुत सुंदर शब्द...वाह..

    नीरज

    ReplyDelete
  4. अश्रुपूरित नयन, विगलित मन
    मैं बस विलोकता रहा तुम्हें , विनत.......

    मजा आ गया .........!

    ReplyDelete
  5. शब्दों का सुंदर संयोजन.

    ReplyDelete
  6. आज शब्दों का मन कुछ उन्मन लगा...हालाँकि उनका समुन्नत भाल सदा कि तरह ही तेज पूर्ण है. कविता सुंदर है . आशा करता हूँ कि यह सिर्फ एक कविता है.

    ReplyDelete
  7. विगलित मन से विलोकने की टीस समझ में नहीं आयी अभिषेक. नीचे का शब्द भी तो तुम्हीं ने लिखा है - ’विनत....’.
    सुन्दर कविता.

    ReplyDelete