छुआ तुमने!!!
न जाने क्यों
भर आयी आंखें
और चुपचाप बह चले
एक दो गीले कन . ......
अश्रुपूरित नयन, विगलित मन
मैं बस विलोकता रहा तुम्हें , विनत.......
न जाने क्यों
भर आयी आंखें
और चुपचाप बह चले
एक दो गीले कन . ......
अश्रुपूरित नयन, विगलित मन
मैं बस विलोकता रहा तुम्हें , विनत.......
uttam bhav sundar shabd
ReplyDeleteन जाने क्यों
ReplyDeleteभर आयी आंखें
और चुपचाप बह चले
एक दो गीले कन . ......
बहुत सुंदर रचना है ...बधाई
अच्छी लगी यह
ReplyDeletebhaut sundar shabd bhav
ReplyDeleteबहुत सुंदर शब्द...वाह..
ReplyDeleteनीरज
... बहुत खूब।
ReplyDeleteअश्रुपूरित नयन, विगलित मन
ReplyDeleteमैं बस विलोकता रहा तुम्हें , विनत.......
मजा आ गया .........!
शब्दों का सुंदर संयोजन.
ReplyDeleteआज शब्दों का मन कुछ उन्मन लगा...हालाँकि उनका समुन्नत भाल सदा कि तरह ही तेज पूर्ण है. कविता सुंदर है . आशा करता हूँ कि यह सिर्फ एक कविता है.
ReplyDeleteविगलित मन से विलोकने की टीस समझ में नहीं आयी अभिषेक. नीचे का शब्द भी तो तुम्हीं ने लिखा है - ’विनत....’.
ReplyDeleteसुन्दर कविता.