(१)
किसे नहीं पता की
सच क्या है .....! ! ! !
लेकिन ....................
किसे नहीं पता की
सच क्या है .....! ! ! !
लेकिन ....................
(2)
कभी सोचा है तुमने !
हमेशा काली ही क्यों होती है ?
परछायी आदमी की !
कभी सोचा है तुमने !
हमेशा काली ही क्यों होती है ?
परछायी आदमी की !
(3)
चाहूँ तुम्हें ! ! ! !
!...!....!......!.....!
आख़िर कैसे ? ? ?
चाहूँ तुम्हें ! ! ! !
!...!....!......!.....!
आख़िर कैसे ? ? ?
(4)
जरूरी है दुनियाँ में बुढ्ढे भी
क्योंकि बुढ्ढे चाहते हैं जोड़ना
हर टूटी चीज को !
जरूरी है दुनियाँ में बुढ्ढे भी
क्योंकि बुढ्ढे चाहते हैं जोड़ना
हर टूटी चीज को !
(5)
आखिर भेद न सके तुम व्यूह
रूपसी के मधुर आह्वाहन का !
मानूँ कैसे पुरुष मैं तुमको ?
आखिर भेद न सके तुम व्यूह
रूपसी के मधुर आह्वाहन का !
मानूँ कैसे पुरुष मैं तुमको ?
किसे नहीं पता की
ReplyDeleteसच क्या है ..! ! ! !
लेकिन ...
kisi ko nahin pata sach kya hai.kam se kam aadmi ki jat ko to bilkul hi nahin.
जरूरी है दुनियाँ में बुढ्ढे भी
क्योंकि बुढ्ढे चाहते हैं जोड़ना
हर टूटी चीज को !
shaklo surat pe na jaa dil dekh tu dil(jawan ki budda) na dikhey to aankhon ka muayina kara
hansi majak hai bhai bura nahin manna. pahli kavita jo aapki padi WONDERFUL darsal kavita yahi hoti hai baki sab to ret chhanna hai
कम शब्दों में सशक्त अभिव्यक्ति है आपकी.
ReplyDelete