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गहरा है तो क्या !
खारा है …
उथली है तो क्या !
मीठी है …..
स्थिर है तो क्या !
सिर्फ़ संचय जानता है ….
बहती है तो क्या !
देना जानती है …
विशाल है तो क्या !
लहरों में लयहीन फुफकार है..
लघु है तो क्या !
लयमय कल कल सुर है …
गंभीर,स्थित्प्रग्य है तो क्या !
ख़ुद में ही ठहरा हुआ है …
विगलित है तो क्या!
हुलसाती है , उफनती है ,
बिखरती है ,सिमटती है ,
ख़ुद को पूरा पूरा दे देना
जानती है…….
गहरा है तो क्या !
खारा है …
उथली है तो क्या !
मीठी है …..
स्थिर है तो क्या !
सिर्फ़ संचय जानता है ….
बहती है तो क्या !
देना जानती है …
विशाल है तो क्या !
लहरों में लयहीन फुफकार है..
लघु है तो क्या !
लयमय कल कल सुर है …
गंभीर,स्थित्प्रग्य है तो क्या !
ख़ुद में ही ठहरा हुआ है …
विगलित है तो क्या!
हुलसाती है , उफनती है ,
बिखरती है ,सिमटती है ,
ख़ुद को पूरा पूरा दे देना
जानती है…….
स्थिर है तो क्या !
ReplyDeleteसिर्फ़ संचय जानता है ….
बहती है तो क्या !
देना जानती है …
How and what?
Himanshu