हमारी पद यात्राओं की थाप से ही
धरती घूमती है अपने अक्ष पर,
हम जहां से आये थे
वहीं लौट जायेगे ,
रास्तों को अपनी कथरी की तरह मोड़ कर
साथ ले जायेगें ,
स्वेद व रक्त की बूँदें जो रह गयी है वहाँ
वही हमारा अर्जन हैं ,
टूटे मटमैले खिलौने जैसे अपने बच्चों को
हम वे सौंप देंगे
और कहेंगे
कि
वे इसे अपनी आँखों में पुतली बनाकर पहन लें !
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