बगल की छत पर शाम को बच्चों के साथ लूडो खेलते दादा जी. |
शाम हो चली है. सब तरफ शान्ति है. हम तीन दिनों से फ्लैट से बाहर नहीं गए हैं. अप्रैल महीने की शुरुआत हो चुकी है लेकिन गरमी पूरी तरह से आयी नहीं है. लोग छतों पर टहल रहे है. हवा साफ है. थोड़ी देर पहले खबर देख रहा था की लाकडाउन से हवा इतनी साफ हो गयी है कि जलन्धर शहर से धौलाधर रेन्ज के बर्फ से ढके पहाड़ दिख रहे हैं. लोग चकित हैं. दिल्ली में भी कुछ ऐसा ही है. वायु गुणवत्ता बहुत सुधर गयी है. सुबह सुबह एकदम पहाड़ॊं जैसा लगता है. साफ नीला आसमान उभर आया है. चण्डीगढ़ में सड़कॊं पर मोर घूम रहे है. नोयडा में भी नीलगाय माल्स के सामने घूम रहे हैं.
लेकिन त्रासदी है कि कम होने
का नाम नहीं ले रही. भारत में पिछले एक दो दिनों में संक्रमित लोगों की संख्या पांच
हजार के आसपास पहुंच गयी. अमेरिका की हालत बहुत खराब है हजारों लोग मर चुके है. लाखों
संक्रमित हैं. यह सब एक बायो एक्लिप्स जैसा लग रहा है. पूरा विश्व ठप पड़ा हुआ है. महान
तथाकथित मानव सभ्यता की उपलब्धियां , उसका ज्ञान , उसके सर्वशक्तिमान ईश्वर कहीं अज्ञात
हैं. धर्म की संस्थायें बन्द हैं.
धर्म की बात आयी तो याद आया.
पिछली पोस्ट में मैंने कंसपीरेसी सिध्दांतों का जिक्र किया था. कोरोना महामारी के बाद
से भारत में और दुनिया में कंसपीरेसी सिध्दांतों
का बाजार गर्म है. तरह तरह की बातें उठ रही हैं. एक प्रचलित अफवाह कि कोरोना को चीन
ने जानबूझ कर फैलाया,को मैंने पिछली पोस्ट में भस्म ( बस्ट! ) करने की
कोशिश की थी. लेकिन यह अफवाह तो एक वैश्विक परिघटना है. आपदा या किसी संकट के समय क्षेत्रीय
स्तर पर भी ऐसी तमाम बातें फैलायी जाती हैं जिनका यथार्थ से कोई लेना देना नहीं होता.
जाने अनजाने वे एक वृहद कंसपीरेसी सिध्दांत का हिस्सा होती हैं.
ऐसे समय में कंसपीरेसी सिध्दांत
क्या हैं, उनके काम करने ढंग क्या है ,उनकी संरचना कैसी है, वे अफवाहॊं से कैसे अलग
हैं, वे वास्तविक षडयंत्रों से कैसे भिन्न हैं, सरकार व समाजों से , प्रचलित धार्मिक
विश्वासों से उनके किस तरह से अन्तर्संम्बन्ध हैं, उनके संदर्भ प्रसंग क्या हैं आदि
सरसरे तौर पर समझ लेना उसने पार पाने में कारगर हो सकता है.
कंसपीरेसी सिध्दांतों की बहुत
सी परिभाषाएं मौजूद है. सरल शब्दों में जन जीवन में घटने वाली बड़ी दुर्घटनाओं की ऐसी
वैकल्पिक व्याख्या जिसमें किसी गुप्त शक्तिशाली व्यक्ति अथवा समूह को इन सब घटनाओं
का कर्त्ता बताया जाय, वह भी किसी भी बुरी मंशा के साथ. ऐसी व्याख्याएं उन सभी स्थापित
व्याख्याओं को निरस्त कर देती हैं जिसे समुदाय, सरकारें सामान्य तौर पर आम जन में फैलाना
चाहते है. यह सब होता है वैज्ञानिक व वस्तुनिष्ठ रूप से उपलब्ध साक्ष्यों को इस तरह
नकार कर कि वे भी कंसपीरेसी का ही एक हिस्सा लगने लगें.
सामान्यतः कंसपीरेसी सिध्दांत
किसी बड़ी महामारी, दुर्घटना, युध्द, आपातकाल के समय ज्यादा प्रभावी व प्रचलित हो जाते
हैं क्योंकि ऐसे समय में एक बड़ा जन समूह अनेक प्रकार की दुश्वारियों, चिन्ताओं व अनिश्चितताओं
से जूझ रहा होता है. अपने आसपास की परिस्थितियां उसे अपने नियंत्रण से बाहर महसूस होती
है. ऐसे समय में मिथ, अन्धविश्वास, कंसपीरेसी सिध्दांत आदमी को अज्ञात से जूझनें में
मदद करते दीखते हैं. हांलाकि वे करते बिल्कुल नहीं है.
ऐसे आपदा के समय में कभी कभी राज्य ( सरकारें) भी कंसपीरेसी सिध्दांतों का प्रयोग अपनी किसी खामी को छुपाने या किसी अन्य अशुध्द उद्देश्य से करते हैं. एक प्रचलित कहानी याद आती है. महाभारत के युध्द में जब अश्वत्थामा को सीधे मारना मुश्किल हो गया तो यह चाल चली गयी कि अश्वत्थामा नामक हाथी को मार कर यह शोर कर दिया जायेगा कि अश्वत्थामा मारा गया ! हाथी मरा कि व्यक्ति मरा यह स्पष्ट नहीं होगा और इससे जो भगदड़ मचेगी उसका लाभ उठाकर वास्तविक अश्वत्थामा को मार दिया जायेगा. यही हुआ भी. कह सकते हैं कि यह एक प्रकार से कंसपीरेसी सिध्दांत का उपयोग था. हांलाकि यहां वास्तविक षड़्यन्त्र भी था.
वास्तविक षडयन्त्र कंसपीरेसी
सिध्दांतों से अलग होता है.
हाल फिलहाल में कोरोना से लड़ाई में जब शस्त्रों मिसाइलों को डालर पिलाने वाले अमेरिका की पहले ही राउण्ड में सासें फूल गयी और उनके स्वास्थ्य क्षेत्र की खामियां विश्व के सामने आ गयीं तो वहां की मीडिया ने अपने देश की आन बचाने के लिए चीन के खिलाफ कहानियां गढ़ के फैला दीं. अपनी कमी को ढकने के लिए दूसरे के बारे में उल्टी सीधी बातें फैलाने से बेहतर क्या हो सकता है ! यह कंसपीरेसी सिध्दांतों का सफल इस्तेमाल था.
वैसे इन सिध्दांतों का चलन पहले
से ही था किन्तु वर्ष २००१ में अमेरिका में हुये आतंकवादी हमले के बाद कंसपीरेसी सिध्दांतों
की बाढ़ सी आ गयी. कई सिध्दांतों के अनुसार यह हमला किसी आन्तरिक व्यक्ति ने ही कराया
था. अमेरिका की बहुत बड़ी आबादी इस एंगल को अभी भी सच मानती है.
तनाव से जूझने के लिए, सामाजिक
आर्थिक रूप से अश्क्त महसूस करने के कारण , अनिश्चितता को समझने के लिए, देश की मुख्य
धारा की राजनीति के प्रति निराशा से भरे होने के कारण, अज्ञात के भय से निपटने के लिए,
रहस्यमयी घटनाओं की व्याख्या के लिए लोग ऐसे
सिध्दांतों का सहारा लेते हैं. मिशेल बरकन ने अपनी पुस्तक ए कल्चर आफ कंसपीरेसी में
ऐसे कई उदाहरण दिये हैं. वे टिमोथी मैकवे की कहानी बताते है कि कैसे कंसपीरेसी सिध्दांतों
के प्रभाव में आकर उसने सरकार व राष्ट्रीय संस्थानों में अपना विश्वास खो दिया व 1994
की गरमियों में ओक्लाहोमा शहर के फेडरल भवन कॊ बम से उड़ा दिया. इसके पहले वह अमेरिका
के संरक्षित व गुप्त एरिया-51 गया. यहां वह एक प्रदर्शनकारी बन कर गया था. प्रदर्शन
इस बारे में था कि एरिया-51 सबके लिए खोला जाय लेकिन उसका मुख्य उद्देश्य इस गुप्त
इलाके में प्रवेश पाना था. इस इलाके में, जॊ कि आज भी मौजूद है, किसी का भी प्रवेश
वर्जित है. यहां के बारे में कई अफवाहें, कई कंसपीरेसी सिध्दांत मौजूद हैं. मुख्यतः
यह माना जाता है कि यहां अमेरिकी सरकार पकड़े गये परग्रही प्राणियों व विमानों को रखती
है व उन पर शोध करती है. टिमोथी मैकवे कॊ फांसी दी जा रही थी तो उसने स्वीकारा कि
“कांटेक्ट” नामक फिल्म देखने से उसका विश्वास मजबूत हुआ. यह फिल्म इसी प्रकार के कंसपीरेसी
विश्वास पर आधारित थी जिसमें यह दिखाया गया था कि एक वैज्ञानिक एलियन्स से सम्पर्क
करता है. टिमोथी मैकवे एरिजोना से प्रसारित होने वाला एक रेडियो भी सुनता था जो कि
ऐसे ही विश्वासों का प्रचार करता था. कुल मिलाकर एक पूरा तंत्र लगा हुआ है ऐसे कंसपीरेसी
विश्वासों को प्रचारित करने में जो लोगों की मानसिक कमजोरियों व अज्ञानता का फायदा
उठाकर समाज में विप्लव पैदा करना चाहते है.
इस पुस्तक के अनुसार कंसपीरेसी
सिध्दांतों/विश्वासों में निम्न कुछ बातें आवश्यक रूप से होती हैं:
·
कुछ भी संयोग
नहीं है: दुनिया में जो कुछ भी होता
है, अच्छा या बुरा, वह निरुदेश्य नहीं होता. उसके पीछे एक मंशा होती है. इस कारण सब
कुछ एक युक्तिसंगत तारतम्य में दिखने लगता है.
·
कुछ भी वैसा
नहीं है जैसा वह दिख रहा है: जो जैसा दिख
रहा है वह वैसा नहीं है. जो अच्छा दिख रहा है हो सकता हो वह शैतान हो, जिसे दुनिया
बुरा कह रही है हो सकता है वह दुनिया को बचाने आया हो.
·
सब कुछ जुड़ा
हुआ है: चूंकि कंसपीरेसी की दुनिया
में कुछ भी संयोग नहीं है, सबके पीछे एक मंशा है इसलिए सब कुछ जुड़ा हुआ है. जैसे केरल
में बाढ आयी तो वहां के लोगों के गौमांस खाने से आयी.
अतः कंसपीरेसी
सिध्दांतॊं की दुनिया काफी बड़ी है. लेकिन उनमें एक पैटर्न है. उन्हें तार्किक तौर पर समझा जा सकता है. कहा जाता है कि कई ऐसी गुप्त संस्थाएं हैं जो
इन सिध्दांतों के आधार पर कहानियां गढ कर लोगों को भरमाने में लगी हुयी हैं. कई धार्मिक
अन्धविश्वास भी कंसपीरेसी सिध्दांतॊं की तरह प्रतीत होते हैं. हर देश समाज में इस तरह
के विश्वास अलग अलग रूप में प्रचलित है. अगली पोस्ट में हम कंसपीरेसी सिध्दांत के कुछ
अन्य रुचिकर हिस्सों को समझने की कोशिश करेगें.
कंसपीरेसी कंस से भी ज्यादा खतरनाक है। यह तो इस तरह अपना काम कर जाता है कि बहुतों को ताउम्र पता नही चल पाता कि वे इसका शिकार भी हुए हैं। इसके गंभीर पररिणामों से रूबरू कराता सुविचारित लेख। आज भ्रामक सूचनाओं की आधिकता के तीव्र विस्तार वाले दौर में जरुरी आलेख👍
ReplyDeleteधनबाद :)
ReplyDelete