Sunday, March 14, 2010

दिनों बाद .........


चलूं

आज दिनॊं बाद

लिखूं कुछ !

कॊई कविता !

हेरूं

मन को

पुरूं

गेहूं के टूण –सी

छोटी

गैरजरूरी

बातों के

टूटॆ धागे !

शब्दों को धोऊं,

पॊछूं

बांधू उनकॊ

धागे में

भावॊं के जुलहे की पूंछ में

टांकू उसे

छोड़ू उसे

भागे वह

द्वारे द्वारे

फूले फूले

नदी किनारे

तीरे तीरे

दौड़ू मैं भी

पीछे पीछे ! !

आज दिनों बाद !

6 comments:

  1. गेहूं के टूंड हल्की सी चुभन भी लिए होते हैं आर्जव ध्यान रहे !

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  2. आर्जव के साथ सहज सरल ’सतत' जुड़ना सुखकर रहा !
    ब्लॉगर की सुविधा का खूब उपयोग किया तुमने ! बेहतर टेम्पलेट !
    कविता पढ़ रहा हूँ, पढ़ लूँ !

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  3. कल मैंने भी 'दिनों के बाद' रचा और तुमने भी !
    नदी किनारे यूँ सहज सरल दौड़ना तो मुझे भी बुला लेना :)

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  4. bahut sahaj ..bahut masoom..bahut sundar likha hai apne...

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