Wednesday, April 29, 2020

सभ्यता के ताम्रपत्र

मैंने देखा है पत्थरों 
को काग़ज़ जैसा 

जब मैं सम्राट था 
मैंने लिखे उन पर 
अपने विजय गीत 

जब मैं हार गया 
मैंने पूजा उन्हें 
आस्था के अभिलेख 
बने वे 


जब मैं कवि बना 
मैंने उनसे 
सन्नाटा सीखा 


भूखे मज़दूर की भूख में 
धैर्य का अल्पविराम 
पत्थरों की सीख थी 


जिसे बरसात भी काट सकती थी 
वह समय की धार को 
झेल गया 
पत्थर बना 
इतिहास के अभिलेख 
पले उसकी कोख में 


लाखों वर्ष पुराने 
किसी पत्थर से पूछो कभी 
सभ्यता की घास 
समय के जंगल 
मानव एक स्वप्न
कितने आये कितने गये ! 

अन्तत: ईश्वर बनने का बोझ
उठाया किसने ?

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