मैंने देखा है पत्थरों
को काग़ज़ जैसा
जब मैं सम्राट था
मैंने लिखे उन पर
अपने विजय गीत
जब मैं हार गया
मैंने पूजा उन्हें
आस्था के अभिलेख
बने वे
जब मैं कवि बना
मैंने उनसे
सन्नाटा सीखा
भूखे मज़दूर की भूख में
धैर्य का अल्पविराम
पत्थरों की सीख थी
जिसे बरसात भी काट सकती थी
वह समय की धार को
झेल गया
पत्थर बना
इतिहास के अभिलेख
पले उसकी कोख में
लाखों वर्ष पुराने
किसी पत्थर से पूछो कभी
सभ्यता की घास
समय के जंगल
मानव एक स्वप्न
कितने आये कितने गये !
अन्तत: ईश्वर बनने का बोझ
उठाया किसने ?
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