Friday, February 13, 2009

क्षणिकाएं

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न भीचों कस कर ।
लिटा स्‍नेहिल अंकों में
बस दुलराओ !


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हवा मैं
फूल तुम ,

मैं तुम में , तुम मुझमें !


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सिन्धु से पूछो
दुष्करता ,
एक समर्पित स्वत्व के वहन की!

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हवा चली ।
फूल
डोल उठा ।

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किया नहीं जा सकता समर्पण
बस यह जाना जा सकता है
कि मै समर्पित हूं !

5 comments:

  1. प्रयास अच्छा बन पड़ा है


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    गुलाबी कोंपलें

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  2. हवा मैं
    फूल तुम ,

    मैं तुम में , तुम मुझमें !

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    हवा चली ।
    फूल
    डोल उठा ।

    "बहुत ही सुंदर लिखे हो, असर हो रहा है !"

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  3. बहुत बढिया क्षणिकाएं हैं।बधाई।

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