(0)
न भीचों कस कर ।
लिटा स्नेहिल अंकों में
बस दुलराओ !
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हवा मैं
फूल तुम ,
मैं तुम में , तुम मुझमें !
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सिन्धु से पूछो
दुष्करता ,
एक समर्पित स्वत्व के वहन की!
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हवा चली ।
फूल
डोल उठा ।
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किया नहीं जा सकता समर्पण
बस यह जाना जा सकता है
कि मै समर्पित हूं !
न भीचों कस कर ।
लिटा स्नेहिल अंकों में
बस दुलराओ !
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हवा मैं
फूल तुम ,
मैं तुम में , तुम मुझमें !
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सिन्धु से पूछो
दुष्करता ,
एक समर्पित स्वत्व के वहन की!
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हवा चली ।
फूल
डोल उठा ।
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किया नहीं जा सकता समर्पण
बस यह जाना जा सकता है
कि मै समर्पित हूं !
प्रयास अच्छा बन पड़ा है
ReplyDelete---
गुलाबी कोंपलें
bahut khub
ReplyDeleteहवा मैं
ReplyDeleteफूल तुम ,
मैं तुम में , तुम मुझमें !
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हवा चली ।
फूल
डोल उठा ।
"बहुत ही सुंदर लिखे हो, असर हो रहा है !"
बहुत बढिया क्षणिकाएं हैं।बधाई।
ReplyDeleteसुन्दर
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