श्रद्धा और
अहंकार ।
एक नहीं है तो
दूसरा
होगा ही होगा ।
बच नहीं सकते तुम
कोई और रास्ता नहीं हैं ।
एक
मूंद सब द्वार ,
सड़ाकर
गला देता है !
एक
तोड़ सब बन्ध,
पिघला कर
बहा देती है !
बच नहीं सकते तुम
कोई और रास्ता नहीं हैं !
अहंकार ।
एक नहीं है तो
दूसरा
होगा ही होगा ।
बच नहीं सकते तुम
कोई और रास्ता नहीं हैं ।
एक
मूंद सब द्वार ,
सड़ाकर
गला देता है !
एक
तोड़ सब बन्ध,
पिघला कर
बहा देती है !
बच नहीं सकते तुम
कोई और रास्ता नहीं हैं !
अच्छा लिखा है। बधाई।
ReplyDeleteसुविचार हैं.
ReplyDeleteसुनो, तुम बहुत अच्छा लिखते हो.....कम लोग हैं जो ऐसा लिख पाते हैं....लिखते रहो निरंतर बिना किसी बात की परवाह किए.
ReplyDeleteकविता है या ब्रह्माण्ड!
ReplyDeleteबहुत सुंदर विचार....बुहत अच्छा लिखा..;
ReplyDeleteसुनो, प्रताप जी की बात ध्यान से सुनो.
ReplyDeleteअच्छा लिखा.