Tuesday, January 27, 2009

अब विदा दो !


पाथेय जुट गया है!!
ओ प्रिय!
अब विदा दो . . . . . .

पुष्प स्नेह का
जितना खिलना था, खिल गया है
अब, इसे चढ़ा दो.

गीत अब भी गीत है
फूल अब भी फूल है, विकम्पित स्वर मैं ही बस झर गया हूं.
अब, इसे इक फूंक में उड़ जाने दो.

बहुत सा पाना , बहुत सा खोना
बहुत से जन्म , बहुत से मरण
बस, अब तो रहने दो.

ओ प्रिय!
पाथेय जुट गया है
अब विदा दो. . . .

4 comments:

  1. उम्दा भाव-कम शब्दों में पूरी बात. वाह!

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  2. बहुत ही उत्कृष्ट भाव और भाषा शैली दोनों ही. बहुत ही उत्कृष्ट कविता.

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  3. अच्छी रचना. लिखते रहो.

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