Tuesday, October 20, 2009

बच्चे .....


बच्चे !
असंख्य
जटिल
कठिन
प्रक्रियाऒं के
कितने
अच्छे
सहज
सरल
परिणाम !

वाह ! ! ! !

5 comments:

  1. बहुत कम शब्दों में समेटा है

    ReplyDelete
  2. अरे! ये तो कमाल कर दिया।
    किसी ने ऐसे क्यों नहीं समझा?

    ब्रेविटी इस सोल ऑफ विट!

    ReplyDelete
  3. वैसे कुंवारे ज्यादा समझते हैं..विवाह.को भी...जैसे अभिषेक ने समझी ये कितनी प्यारी, सहज पर विशिष्ट बात...

    ReplyDelete
  4. श्रीश भईया ने तो कुछ और ही समझ लिया .:) :).......मैंने तो इस तरह से सोचा भी नही था ....खैर.....अब क्या कर सकते है ........ "जाकी रही भावना जैसी ............ :) :) :)

    ReplyDelete