चलती हवा में
झूमते पेड़ की खुशी का गीत
मुझॆ पढ़ने नहीं आता !
तुम्हारे शब्द भी कहां पढ़ पाता हूं ! ! !
बसन्ती बयार में
मचलती चिड़िया की चहकन
मुझे लिखने नहीं आती !
तुम्हारी हंसी भी कहां लिख पाता हूं ! ! !
पहली फुहार में
तर बतर भीजतें पलाश की बूंद बूंद खुशी
मुझे समझ नहीं आती !
तुम्हारी निःशब्द मुस्कुराहटे
ठिठुरती रात के बाद
जवान हुयी ताजा धूप का अल्हड़पन
मुझे पीने नहीं आता !
तुम्हें आंख भर देख कुछ बोल कहां पाता हूं ! ! !
बेहतर है दोस्त...
ReplyDeleteतुम्हारी निःशब्द मुस्कुराहटे भी कहां समझ पाता हूं ! ! !
ReplyDeleteपर यह कला तो विकसित करनी ही होगी
सुन्दर रचना एहसास की
अरे वाह जी बहुत सुंदर जबाब नही
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत बढ़िया!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteतुम्हें आंख भर देख कुछ बोल कहां पाता हूं ! ! ! ................ क्या बात है !
बहुत अच्छे
ReplyDelete’गिरा अनयन नयन बिनु बानी’...! बोल कैसे पाओगे प्यारे !
ReplyDeleteनिःशब्दता जरूरी सी चीज है इस वक्त !
बहुत खूब!
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