तुम्हारी देह में
मैं नहीं खोजता तुम्हारी आत्मा
जिससे छू सकूँ ।
आत्मा देह का सपना है।
टूटने दो ।
तुम्हारे सीने पर जो दो आधे लिखे अक्षर हैं
उन्हीं से रच कर एक अज्ञात लिपि
मैं
अपनी देह को देना चाहता हूँ
सुधि के कुछ अधूरे खण्ड काव्य ।
वस्तुत: हमारी देहें
पुतला है !
वे जीवित होना चाहती है !
देखो अपने होंठों को !
किसी जंगली फूल के लाल पत्ते !
सुनों, मेरे तुम , कहता हूँ तुमसे !
मध्दम स्पर्श की रोशनी में
वे विलुप्त हो जाएँगें !
वे चलें जाएँगे खोजनें
आत्मा के सपने ,
जीवित होने भ्रम !
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