Sunday, August 20, 2017

जापान और हम

कला संकाय के किले में शाम को कक्षाएं चलती थी जापनीज़ की।   चार बजे शुरू हो कर छह बजे तक। आकियो सर जो कि टोक्यो निवासी थे, हमें कांजी कतकना रटवाते थे।
पहले दिन जब कक्षाएं शुरु हुई तो परिचय से पहले ही आकियो सर ने हम सबसे एक काम कराया  । सबने अपना वो हाथ आगे किया जिस पर घड़ी होती है, फिर हम सबने अपनी घड़ियों में समय को एक किया। ठीक चार बजे। एक सप्ताह तक तो सब भारतीय तरीके से चलता रहा, लेकिन अगले सोमवार जब मैं चार बजके एक मिनट पर क्लास पहुँचा तो मुझे ससम्मान कक्षा से बाहर कर दिया गया। मैं तो भक्क रह गया! तब समझ आया कि चार बजे मतलब ठीक चार बजे।
लेकिन हमारी सालों की आदत तो दो दिन में छुटाए न छूटे, तो शान्तिपूर्वक हम पौने चार बजे हम रुम न ३२ के बाहर मौजूद रहते थे।
कक्षा में लगभग तीस विद्यार्थी थे। ज्यादातर  ध्यान से पढ़ते थे लेकिन कुछ महाशय थे जो पीछे बैठ चू चपड़ जारी रखते थे। शुरूआत के लगभग पन्द्रह दिनों तक आकियो सर ने कुछ नहीं कहा, सिर्फ़ मुस्कुरा कर उन्हें चुप रहने की सलाह दी। लेकिन वो दिन आ ही गया जब उनके सब्र का बाध टूट गया। लगभग पाँच बज रहे थे। पूरे संकाय में सन्नाटा था। सिर्फ हमारी कक्षाएं चल रही थी। अचानक सर पूरी ताकत से चिल्लाए ! उनकी गुर्राहट इतनी तेज़ थी कि आवाज़ अहाते में गूजती रही।उन दो लड़को को खड़ा कर अपनी शुद्ध हिन्दी में सर फिर चिल्लाए ," तुम्हें पता है तुमने क्या किया है?" लड़के चुप। " तुमने दो मिनट बात की क्लास में, और तीस लोगों का दो मिनट बरबाद कर दिया। इस तरह तुमने अपने देश को साठ मिनट पीछे कर दिया....! "
हम सब शान्त। बात देश पर आ गयी तो सब गम्भीर हो  गए। बात ऐसी थी  कि सबको चुभ गयी। और इस तरह का यह अन्तिम वाकया रहा।
अगले साल आकियो सर ने बीएचयू में पढ़ाना छोड़ दिया।वो राजस्थान में फिल्माई जा रही किसी जापनीज़ डाक्यूमेन्ट्री फिल्म निर्माण में सहयोग देने चले गए। अब उनकी पत्नी कक्षाएं लेती है।साथ ही  रवीन्द्रपुरी में शीबा रेस्त्रां भी चलाते हैं पति पत्नी।
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जापान के स्मार्ट शहरों से प्रेरणा लेने से पहले हमें जापान के लोगों से बहुत कुछ सीखना होगा। अगर हम उनसे थोड़ा सा "सिविक सेन्स" सीख लें, तो हमारे शहर अपने आप ही स्मार्ट हो जाएगे।

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