Monday, February 2, 2015

हिन्दी




ध्वनि ,शब्द
और अर्थ से परे
बस एक भाषा ही नहीं
हिन्दी !
तुम एक जागृत संवेदना वृत्त हो ,
अभिव्यक्ति के नवीन सोपानों में
हमारी समग्र सामासिक चेतना को
प्रतिपल नव्य उत्स देती !

कक्षाओं , व्याकरण की किताबों ,
शिक्षण की अनेक प्रविधियों व
व्यवहार के बहु प्रसंगों को ही नहीं
हिन्दी !
तुम हमारे अस्तित्व की
उन भंगिमाओं को भी पूर्ण करती हो
जिनसे हम अपने अन्तस को
बाह्य से जोड़ पाते हैं !

अपने दृश्य वाक्यों की
भीतरी अदृश्य संरचनाऒं में से ,
शब्दों के नेपथ्य की
अर्न्तभूत
अर्थ भाव बॊध गुहाओं  से ,
वृहद गद्यांशों पद्यांशों से ,
पराभूत
चेतना को धुलकर साफ कर देने वाले
परिमार्जित मानवीय ग्यान बिम्बों में
हिन्दी !
तुम हमारे व्यक्तित्व की
उन रस धाराओं को
बड़े करीने से ,
बड़ी कुशलता , बड़ी अदब से
सजा कर , सवांरकर रखा है
जो हमारी सभ्यता के मूल उत्स को
समय के क्रूर पंजों की पहुंच से दूर करती हैं ,
हमें अक्षुण्ण बनाती हैं ।

हिन्दी !
तुम एकमात्र हो !
हम सोच ही नहीं सकते कोई विकल्प
तुम्हारे लिये
क्योंकि
हमनें ही तुम्हें नहीं
बल्कि तुमनें भी हमें
हमारी समन्वय व समायोजन की
सहिष्णु सांस्कृतिक प्रवृत्तियों के साथ
समझा है
आत्मसात किया है
अभिव्यक्त किया है ! ! !

3 comments:

  1. बढियां प्रस्तुति शब्द दर शब्द

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  2. 'तुम हमारे व्यक्तित्व की
    उन रस धाराओं को
    बड़े करीने से ,
    बड़ी कुशलता , बड़ी अदब से
    सजा कर , सवांरकर रखा है
    जो हमारी सभ्यता के मूल उत्स को
    समय के क्रूर पंजों की पहुंच से दूर करती हैं ,
    हमें अक्षुण्ण बनाती हैं ।'
    - हिन्दी भाषा जिन संस्कारों से हमारा व्यक्तित्व सँवारती है ,सुदूर अतीत से भविष्य तक काल खंडों में जीवंत निरंतरता बनाए रख , बिखर कर गुमनाम होने से बचाए है - पूर्वजों की अमूल्य धरोहर बनी अपनी पहचान से संपन्न कर हमारे अस्तित्व की वाहक बन गई है .

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