Sunday, June 23, 2013

सोच (२)



सब कुछ स्वयं में ही विरोधाभासी है । जो है, उसी में उसका विरोध है , विपरीत है । सच में झूठ है, झूठ में सच है , मौत में जीवन है , जीवन में मौत है, जो अच्छा है , वही क्षण के एक बिन्दु के बाद बुरा है , बुरा है वही स्थान की एक अलग विमा में अच्छा है !
और सबसे रहस्यमय हैं इन विपरीतताओं के संधिस्थल , वे गूढ क्षितिज , जहां सच झूठ से मिलता है , मौत जीवन से मिलती है , जीवन मौत से मिलता है और गहन संवेदना विषण्ण हिंसा से मिलती है !

6 comments:

  1. गहन अभिवयक्ति......

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  2. गहरी सोच से उपजे वाक्य.

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  3. द्वंद्व की यह अनुभूति सभी को होती होगी मगर इस अनुभूति को याद कम ही रख पाते हैं और अभिव्यक्ति! सरल नहीं है। ..बधाई।

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  4. जो सूक्ष्म दृष्टि इसको देख लेती है तो इस पहेली को अवश्य समझ लेती है..

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  5. Ha,ye virodhabhaas sachha hai.kyoki virodhbhaas hi chijo ko gatishil banaata hai. aur gatishilataa hi prakriti hai.agar ye virodhbhaas nahi hoga,chijo me dvand nhi hoga.bagair dvand ke gati nahi hogi.bagair gati prakriti ki kalpna nahi ho sakti.bagair prakriti ke ham kahaa,hamaari soch kahaa.bagair soch ke khushiya kahaa.in khushiyo ne hi is dharati ko swarg se sundar banaaya.so virodhbhaas se hi sab kuchh kaayam hai.

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