Friday, May 13, 2011

फिर कभी !


खुद ही सब कुछ छोड़ आये हैं
फिर भी एक कतरा बेजुबान सी
उम्मीद है कहीं कि 
वहां से आवाज आयेगी
फिर कोई !

सबको पहचानते थे बखूबी
रंग रंग से वाकिफ थे उनके
फिर भी सबके सामने कर दिया इन्कार
किसी एक को भी पहचानने से
(वहएकहीकईहोकर आया था !)
तब भी एक बात बेबात सी है मन में
कि वे आयेंगे बुलाने हमको
फिर कभी !

दर्द को मांगने
लब्ज आया तो था
हमने गुरूर में कह दिया, जाओ !
तुम्हारे बस की बात नहीं ,
मिलेगें,
फिर कभी !


10 comments:

  1. दर्द को मांगने
    लब्ज आया तो था
    हमने गुरूर में कह दिया, जाओ !
    तुम्हारे बस की बात नहीं ,
    मिलेगें,
    फिर कभी !


    अच्छा लगा...काफ़ी अच्छा...

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  2. bahut sundar rachna...pahli baar aapke blog par aai hun ...bahut achha lga..

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  3. एहसास का यह धरोहर फिर मिलने पर काम आयेगा

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  4. wow thatz really a beautiful piece of writing !!
    Last verse was fantastically crafted.

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  5. सुंदर.
    घुघूती बासूती

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  6. @खुद ही सब कुछ छोड़ आये हैं
    फिर भी एक कतरा बेजुबान सी
    उम्मीद है कहीं कि
    वहां से आवाज आयेगी
    फिर कोई !
    ...phir vahi jaanlevaa ummeed !!!!!

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  7. pehla stanza samajh me nhi aaya k aap kehna kya chahte hai?lekin dusra aur khaskar 3 stanza behtrin hai.thank u.

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  8. मिले वो अजनबी बनकर तो रफ़'अत
    ज़माने का चलन याद आ गया है ... सुन्दर!

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  9. बहुत सुंदर मन के भाव ...
    प्रभावित करती रचना .

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