Sunday, January 10, 2010

बात


गर्म टहकार,
कुनकुनी पीली ,
चमकीली उत्फुल्ल,
धूप
सिर्फ धूप नहीं है ।

दरसल वह एक बात है ।
बात –
जो सूरज धरती से किया करता है ।
रोज रोज , हर रोज ।

उसके कई अर्थ हैं ।
अनेक भाव ,
गन्ध ,
भंगिमाएं ,
कहानियां हैं ।
धरती की छाती पर टंकी
छोटी से छोटी घास से लेकर
वृहद देवदारू व वटवृक्षों तक की
व्यथा कथाएं हैं ,
आत्माभिव्यक्तियां हैं,
उल्लास के गीत हैं ,
शोक के मौन आख्यान हैं,
सूरज जिन्हें
हर रोज चुपचाप
धरती से कहता सुनता है ।

दरसल
धूप की यह ऊष्मा
सूरज का दुख है !
प्राजंल मोदक हरितिमा से आवृत्त
ये वृक्ष
वस्तुतः
सूरज के स्वप्न हैं ।
सूरज
अपने गुह्यतम सुनसान तापगर्भॊं में
इन हरे भरे वृक्षों के स्वप्न -चित्र
संजो कर रखता है ।

8 comments:

  1. ये वृक्ष
    वस्तुतः
    सूरज के स्वप्न हैं ।

    -बहुत शानदार!! आनन्द आ गया!!

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  2. वाह सचमुच कितनी सुन्दर अभिव्यक्ति -आखिर तपते सूर्य को भी तो कोई सहारा चाहिए .....

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  3. उष्मा को ऊष्मा कर लो भाई।
    यह कविता वर्तुलाकार है।
    बात
    धूप
    आख्यान
    चुपचाप कहना सुनना
    स्वप्नों के दु:ख
    अनेक गन्ध भंगिमाएँ....
    बस बुनावट देख रहा हूँ -
    क्या शब्द क्या भाव!

    बहुत आगे जाओगे।
    मन करता है
    कह दूँ -
    आशीर्वाद।

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  4. एक अद्भुत कल्पना और संवेदनशीलता से जन्मी एक बहुत ही सुन्दर कविता..

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  5. सही पढ़ने वाले बहुत कम हैं ।

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  6. सूरज
    अपने गुह्यतम सुनसान तापगर्भॊं में
    इन हरे भरे वृक्षों के स्वप्न -चित्र
    संजो कर रखता है ।
    ...अद्भुत लेकिन हृदयस्पर्शी कल्पना!
    बहुत अच्छी कविता.

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