Thursday, November 19, 2009

अ अस्वीकार


मैंने जाना
कि
वह करना,
उसमें होना,
गलत है ।

मैंने उसका निषेध किया ।
खुद को उसकी तरफ बहने से रोका ।
उसके प्रति भीतर अपने
वह स्वभाव रचा
जो
अनुभव
अनुभूतियों
व निष्कर्षों पर आधारित था ।
मैंने विजय पायी क्योंकि
अन्ततः
उसके और अपने अंतर्संबंधो का निर्धारक
मैं था !

अब , जब
मेरा उससे कोई लेना देना नहीं है
तो मैं

उसके विरोध में भी नहीं हूं !

5 comments:

  1. अब , जब
    मेरा उससे कोई लेना देना नहीं है
    तो मैं

    उसके विरोध में भी नहीं हूं !


    --बेहतरीन!!!

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  2. अद्भुत रचना ,एक मष्तिष्कवादी का विजयोल्लास !
    आर्जव क्या "अर्न्तसम्बन्धों"सही है या "अंतर्सम्बंधों"?

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  3. मन का जैसे कहीं दूर-दूर कुलांचें भरना और फिर बरगत तले सुस्ताते हुए आसमान को ठेंगा दिखाना..आर्जव मुझे कुछ ऐसा क्यों लगा..?

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  4. "अब , जब
    मेरा उससे कोई लेना देना नहीं है
    तो मैं

    उसके विरोध में भी नहीं हूं ! "
    बहुत अच्छी कविता

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