Friday, September 4, 2009

अन्यथा ..........


सब कुछ तुम्हारा ही है !


मेरी जीत , मेरी हार
मेरी वासनाएं ,आकांक्षाए
मेरे पाप ...........

सब कुछ तुम्हारा ही है !

मेरे मद , मेरे मोह
मेरी उद्विग्नताये , व्यग्रताएं
मेरा अस्तित्व ..........

सब तुम्हारा ही है !

मेरा क्रोध , मेरा प्रेम
मेरी उदघोशनाए , गर्जनाये
मेरे अपराध.....

सब तुम्हारा ही है !

तुमसे विलग है
मेरा
बस एक निर्णय --
सही अथवा ग़लत का !
पाप अथवा पुन्य का !
तुम्हारे इन भव्य उपहारों के प्रति .......
जिससे
मै मै हूँ
और
तुम तुम हो
एकदम प्रछन्न .......दूर दूर

अन्यथा....... ..............!!!!!!!!!!!!!!

5 comments:

  1. सब कुछ तुम्हारा ही है !


    मेरी जीत , मेरी हार
    मेरी वासनाएं ,आकांक्षाए
    मेरे पाप ...........


    बहुत खूब, और एक बात जो अच्छी लगी वह यह की आपने अपने शब्द " मेरे पाप....." पर ही समेत दिए ! 'मेरे पुण्य' भी लिख देते हो बडबोली बात हो जाती !

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  2. बहुत गहरी रचना है, वाह!

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना !!!!

    एक लम्बे समयांतराल के बाद आपका ब्लॉग पर पुनः सक्रिय होना बहुत ही अच्छा लगा.

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  4. अन्यथा....... ..............!!!!!!!!!!!!!!

    कितना कुछ न कहते हुए भी कितना कुछ कह जाती है कविता

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  5. चलो अच्छा हुआ...!
    तुम्हें वापस अपनी लय में देख रहा हूं।
    ढेर सारी शुभकामनाएं...!
    आते रहो..।
    अच्छा लगेगा.।

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