Saturday, April 11, 2009

शब्द

(मेरी) कविता के शब्दों में
तुम
अर्थ न खोजना, उसकी व्याख्यायें न करना ।
केवल उच्‍चरित करना ,
उन्हें धारण करना और चुप हो जाना ।

वे बस शब्द नहीं हैं ।
वे दूत हैं ।
दूत-बहुत सूक्ष्म जीवधारी , तरंगायित आवृत्ति निर्मित देह वाले ।
आवृत्ति-चेतना के होने का एक ढ़ंग , गतिशील इसलिये अशंतः अभिव्यक्त ।
खैर,
तुम
उन्हें उच्‍चरित करना और चुप हो जाना ।
तुममें प्रवेश कर
वे तुम्हें अपने साथ कहीं ले जायेंगें ।
कहीं-किसी दूसरी जगह पर, अन्यत्र ।

हो सकता है
वो जगह उन्हें कहीं तुम्हारे भीतर ही मिल जाय
और वे तुम्हें वहां पहुंचा
(मुझमें) वापस लौट आयें ।

या हो सकता है
कि उस जगह की खोज में
वे कहीं तुम्हें तुमसे बाहर ले जांय ।
कहीं -स्थान व स्थिति के किसी दूसरे कोण व विमा में ,
और वहां घुमा दिखा
तुम्हें तुममें वापस छोंड़ने के
बाद
(मुझमें) वापस आयें ।

हो सकता है ! ,! ,! ,
लेकिन तुम उनमें अर्थ न खोजना, व्याख्या न करना ।
बड़े अच्छे हैं वे दूत ,
अपना काम कर लेंगें ।

5 comments:

  1. bahut badhiyaa aarjah jee, itnee kam awasthaa mein aapkaa gyan aur andaaj jaroor hee prabhavit karne wala hai. blog bhee kaafee khoobsoorat ban pada hai. likhte rahein.

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  2. भाई बहुत ही खूब लिखते हो आप वाह वाह। आपकी कविता पढ़कर मैं तो फैन हो गया आपका।

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  3. GAMBHIRATA HAI AAPKE LEKHAN ME KRAMAAGAT ROOP SE LIKHTE RAHE...


    ARSH

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  4. बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित कविता है.
    बिलकुल ही नवीन और अनछुए बिम्बों ने कविता को एक अपूर्व ताजगी प्रदान की है.
    बहुत ही उत्कृष्ट रचना !!!

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  5. हैरान हूँ आपकी लेखनी पर.... इतनी कम उम्र में इतनी गहरी और ससक्त रचना....बहुत खूब....!!

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