Sunday, February 22, 2009

चौराहे

हार जीत
प्राप्ति अप्राप्ति
अवनति उत्कर्ष
सब बस एक चौराहे हैं ।


कुछ पल रुकना है ।
आगे का पथ निर्देशन लेना है ।
चल देना है ।


कहीं नहीं ....
कहीं भी नहीं .....
है कोई ठहरी हुयी उपलब्धि ....
कोई जीवित अगत्यात्मक स्थिति !
कहीं नहीं ।

एक समय सब कुछ को --श्रेष्ठतम को , निकॄष्ठतम को
बीत जाना है …रीत जाना है ।

पाने वाले और खोने वाले को अन्ततः
बस देखने वाला होकर
चलते चले जाना है !
चलते चले जाना है !
चलते चले जाना है!

5 comments:

  1. सब एक चौराहे पर दीखते हैं ...अलग अलग बिखरे हुए ....सचमुच

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  2. बहुत बेहतरीन!!

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  3. सत्य विचार !!!उत्तम लेखन !!!
    सृष्टि का ये क्रम सुनिश्चित
    आदि से चलता रहा है ।
    और हर युग में यही जग
    इसी में ढलता रहा है ।।

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  4. बहुत ही बेहतरीन........अगर सच पूछें तो मुझे विश्वास नहीं हो पा रहा है कि ये आपका लिखा है.
    इतनी गहरी अभिव्यक्ति......? शायद इसी लिए कहा जाता है कि उम्र का प्रतिभा से कोई संबंध नहीं.
    शुभकामनाऎं..........

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  5. bahut sundar!!!!!!!! keep it up abhishek dubey

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