समय की नदी में
छोटी -सी नाव- से बहते हैं रिश्ते !
कभी भावनाओं की लहर ,
तो कभी
उलझन के थपेड़ों में
हुटकते हैं रिश्ते !
कभी
वसन्त के स्वागत में मन की बगिया में
नयी कोंपलों -से विंहसते है रिश्ते
तो कभी और खिंचाव न झेल सकी
तनी रस्सी-से छिंटक जाते हैं रिश्ते ।
कभी सब कुछ खत्म हो कर भी
बहुत कुछ बच जाता है!
और
कभी सब कुछ रह कर भी
कुछ नहीं रह पाता है ।
कभी
कोई टूटी दबी आस चींख पड़ती है
मन के अन्धेरों से,
कभी कोई फांस निकल आती है
भीतर की अतल गहराइयों से ।
कभी बहुत चाह कर भी
कोई प्रश्न उत्तर नहीं बन पाता है ।
और कभी हजारों उत्तरों के शोर में
मध्दम सा वो प्रश्न
अनसुना ही रह जाता है !
फिर भी ,
समय की नदी में
छोटी -सी नाव- से बहते रहते हैं रिश्ते !
छोटी -सी नाव- से बहते हैं रिश्ते !
कभी भावनाओं की लहर ,
तो कभी
उलझन के थपेड़ों में
हुटकते हैं रिश्ते !
कभी
वसन्त के स्वागत में मन की बगिया में
नयी कोंपलों -से विंहसते है रिश्ते
तो कभी और खिंचाव न झेल सकी
तनी रस्सी-से छिंटक जाते हैं रिश्ते ।
कभी सब कुछ खत्म हो कर भी
बहुत कुछ बच जाता है!
और
कभी सब कुछ रह कर भी
कुछ नहीं रह पाता है ।
कभी
कोई टूटी दबी आस चींख पड़ती है
मन के अन्धेरों से,
कभी कोई फांस निकल आती है
भीतर की अतल गहराइयों से ।
कभी बहुत चाह कर भी
कोई प्रश्न उत्तर नहीं बन पाता है ।
और कभी हजारों उत्तरों के शोर में
मध्दम सा वो प्रश्न
अनसुना ही रह जाता है !
फिर भी ,
समय की नदी में
छोटी -सी नाव- से बहते रहते हैं रिश्ते !
सच बहुत सुन्दर है तुम्हारी कविता!
ReplyDelete---
गुलाबी कोंपलें
क्या बात है तस्वीरें बदल भी रही हैं और बड़ी भी हो रही हैं. बस तस्वीरें ही तस्वीरें.
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है।बधाई स्वीकारें।
ReplyDelete"कभी सब कुछ खत्म हो कर भी
बहुत कुछ बच जाता है!
और
कभी सब कुछ रह कर भी
कुछ नहीं रह पाता है ।"
बहुत अच्छी कविता है,बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteरिश्तों के सभी रंग समाहित कर दिए इन थोड़ी ही पंक्तियों में...बहुत सुंदर !!!
ReplyDeleteCONGRATS! THE POEM DIVULGES YOUR INNER CONSCIENCE AND YOUR CONCERN FOR BUDDING RELATIONSHIPS. I LIKED THE VERY GRAVITY WITH WHICH YOU HAVE EXPRESSED SUCH A FRAGILE AND TENDER TOPIC. GOD BLESS YOU! HOPING FOR SOME MORE..........
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