Sunday, February 8, 2009

रिश्ते

समय की नदी में
छोटी -सी नाव- से बहते हैं रिश्ते !

कभी भावनाओं की लहर ,
तो कभी
उलझन के थपेड़ों में
हुटकते हैं रिश्ते !

कभी
वसन्त के स्वागत में मन की बगिया में
नयी कोंपलों -से विंहसते है रिश्ते
तो कभी और खिंचाव न झेल सकी
तनी रस्सी-से छिंटक जाते हैं रिश्ते ।


कभी सब कुछ खत्म हो कर भी
बहुत कुछ बच जाता है!
और
कभी सब कुछ रह कर भी
कुछ नहीं रह पाता है ।


कभी
कोई टूटी दबी आस चींख पड़ती है
मन के अन्धेरों से,
कभी कोई फांस निकल आती है
भीतर की अतल गहराइयों से ।

कभी बहुत चाह कर भी
कोई प्रश्न उत्तर नहीं बन पाता है ।
और कभी हजारों उत्तरों के शोर में
मध्दम सा वो प्रश्न
अनसुना ही रह जाता है !

फिर भी ,
समय की नदी में
छोटी -सी नाव- से बहते रहते हैं रिश्ते !




6 comments:

  1. सच बहुत सुन्दर है तुम्हारी कविता!




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    गुलाबी कोंपलें

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  2. क्या बात है तस्वीरें बदल भी रही हैं और बड़ी भी हो रही हैं. बस तस्वीरें ही तस्वीरें.

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  3. बहुत अच्छी रचना है।बधाई स्वीकारें।

    "कभी सब कुछ खत्म हो कर भी
    बहुत कुछ बच जाता है!
    और
    कभी सब कुछ रह कर भी
    कुछ नहीं रह पाता है ।"

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  4. बहुत अच्छी कविता है,बधाई स्वीकारें।

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  5. रिश्तों के सभी रंग समाहित कर दिए इन थोड़ी ही पंक्तियों में...बहुत सुंदर !!!

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  6. CONGRATS! THE POEM DIVULGES YOUR INNER CONSCIENCE AND YOUR CONCERN FOR BUDDING RELATIONSHIPS. I LIKED THE VERY GRAVITY WITH WHICH YOU HAVE EXPRESSED SUCH A FRAGILE AND TENDER TOPIC. GOD BLESS YOU! HOPING FOR SOME MORE..........

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