बाहर के सारे लोग
मुझे अच्छा कहें और
मैं अपने को बुरा जानता रहूं ।
एक यह ।
बाहर के सारे लोग
मुझे बुरा कहें और
मैं अपने को अच्छा जानता रहूं ।
एक यह ।
बाहर भी सब अच्छा कहें
और
मैं भी अपने को अच्छा जानूं ।
एक यह ।
बाहर भी सब बुरा कहें ,
मैं भी
खुद को बुरा जानूं ।
एक यह ।
बस
और कुछ नहीं ।
हर कोई
कहीं न कहीं
इन्हीं के बीच है
या गुजर चुका है !
अपनी पहचान के बहुत से तरीके हैं ।
उनमें से एक यह भी ।
बस
और कुछ नहीं ।
मुझे अच्छा कहें और
मैं अपने को बुरा जानता रहूं ।
एक यह ।
बाहर के सारे लोग
मुझे बुरा कहें और
मैं अपने को अच्छा जानता रहूं ।
एक यह ।
बाहर भी सब अच्छा कहें
और
मैं भी अपने को अच्छा जानूं ।
एक यह ।
बाहर भी सब बुरा कहें ,
मैं भी
खुद को बुरा जानूं ।
एक यह ।
बस
और कुछ नहीं ।
हर कोई
कहीं न कहीं
इन्हीं के बीच है
या गुजर चुका है !
अपनी पहचान के बहुत से तरीके हैं ।
उनमें से एक यह भी ।
बस
और कुछ नहीं ।
अच्छी रचना है....
ReplyDeleteअधर ठीक नहीं, कुछ सोचें या मेरी बात मानकर ख़ुद को अच्छा मान लें!
ReplyDeleteसही है. नियमित लिखें, शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteपहचानता हूँ इन शब्दों और भावों को.
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता .