Monday, March 26, 2018

रेड पर रेड: फिल्म पर अपने विचार

रेड से एक दृश्य , चित्र इंटरनेट से  



कल शाम अचानक प्लान बना और मै, अनु व् मित्र दुबे के साथ गुरुग्राम के पीवीआर सिटी सेंटर में रेड पर रेड मारने चल दिए ! फ़िल्म अच्छी लगी तो सोचा अनुभव साझा किया जाय.सरकारी अफसर की ईमानदारी एक ऎसी फिल्मी चीज हो गयी है जिसे लोग परदे पर देखते हैं,तालियां बजाते हैं, आनंन्दित होते हैं. यह ऎसी हो गयी लगती है जैसे प्लैटॉनिक प्रेम ! वास्तव में तो कम ही पाया जाता है लेकिन लोग उपन्यासों में, फिल्मों में, नाटकों में देखकर आनंद लेते हैं. मन में कहीं गहरे “Willing Suspension of disbelief”  का सिद्धांत भी काम कर रहा होता है कि नहीं नहीं ! ऎसी ईमानदारी तो बस फिल्मो में होती है. अमय पतनायक ( अजय देवगन) जैसे ईमानदार आफिसर वास्तव में थोडे होते हैं. दर्शक के मन में चल रही इसी अवचेतन सोच से “रेड” फ़िल्म का मुख्य रोमांच उभरता हैं.


पूरी फ़िल्म दर्शक को बांधे रखती है. भारतीय इतिहास में आयकर विभाग द्वारा डाली गयी सबसे लम्बी रेड की सत्य कथा पर आधारित यह फ़िल्म कहीं न कहीं यह दिखाने की कोशिश करती है कि अगर नौकरशाही पूरी ईमानदारी से अपना काम करने लगे तो  भ्रष्ट से भ्रष्ट  राजनैतिक वर्ग को भी उसके आगे घुटने टेकने पड़ सकते है. सामान्य तौर पर फिल्मों में किसी ईमानदार पुलिस अफसर को एक भ्रष्ट नेता से लोहा लेते दिखाया जाता है लेकिन एक आयकर आयुक्त को या आयकर विभाग को और उसके महत्त्व को शायद पहली बार इस तरह दर्शकों के सामने बड़े परदे पर लाया गया है. ताऊ जी जो की भ्रष्ट सांसद की भूमिका में है, क्षेत्रीय बाहुबली हैं , उनके घर पहुचे आयकर अधिकारियों द्वारा रेड के समय जो शर्ते बतायी जाती हैं वह सुनना दर्शक के लिए रोमांच की अनुभूति देता है. रेड के दौरान घर के हर हिस्से में छुपा अकूत पैसा, छत से बरसते सोने के बिस्किट दर्शक में मन में बैठे एक लुटेरे राजनेता की छवि को पुष्ट करते हैं. दर्शक ताऊ जी को अपने इलाके के दबंग नेता से बहुत आसानी से जोड़ पाता है जिसे उसने पिछले चुनाव में वोट दिया है.

१६ जुलाई १९८१ को कांग्रेस पार्टी के सांसद सरदार इन्दर सिंह के घर आयकर आयुक्त शरद पाण्डेय ने रेड डाली थी. इसी घटना का फिल्मांकन करती इस फ़िल्म में अभिनेत्री एलेना ने एक सुन्दर ,कर्त्तव्यनिष्ठ, साहसी पत्नी भूमिका निभायी है. अफसर ईमानदार रहे इसके लिए ईमानदार बीवी का होना बहुत जरूरी है यह बात फ़िल्म का हीरो बातों बातों में स्वीकार करता है.
फ़िल्म की सफलता एक मुख्य हिस्सा अजय देवगन की ठसी हुयी, मारक  डायलाग डीलीवरी से बनता है. अजय ने ऎसी भूमिकाओं में , अन्य भूमिकाओं के बनिस्पत, ज्यादा कुशलता  हासिल कर ली है. गंगाजल से लेकर सिंघम तक और अब रेड ! ऎसी भूमिकाओं में वो एकदम फिट बैठते हैं.

एक दबंग बाहुबली सांसद के रूप में सौरभ शुक्ला ने अपनी सिग्नेचर स्टाइल में काम किया है. ८५ वर्ष की पुष्पा जोशी ताऊ जी की माँ के रूप में बहुत प्रभावपूर्ण रही है.फ़िल्म का संगीत बढ़िया है लेकिन कई बार ऐसा लगता  है कि गानों को बेवजह बीच में घुसा दिया गया है. इससे कभी कभी कहानी का प्रवाह भी बाधित हुआ लगता है. कुल मिलकर राजकुमार गुप्ता ने एक अच्छी फ़िल्म बनायी है.



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