अगले महीने की तनख़्वाह जोहते हम
भूल जाते हैं अक्सर
कि अगले महीने की तनख़्वाह के साथ
कम हो जाएँगे
हमारी ज़िंदगी के एक महीने !
सिर्फ़ तनख़्वाह के लिए
वक़्त को इतनी जल्दी
बीत जाने देने का उतावलापन
क्या कुछ ज़्यादा महँगा नहीं?
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