मन:
ज्यादा कविता लिखने से
दिमाग कमजोर हो जाता है,
कामन सेन्स चुक जाता है
दिमाग कमजोर हो जाता है,
कामन सेन्स चुक जाता है
सच में !
अलल बलल कुछ भी छेरते रहना सृजन नहीं है।
कहा है किसी बड़े आदमी ने
"लेखन खून थूकने के समान है"
कहा है किसी बड़े आदमी ने
"लेखन खून थूकने के समान है"
अ-मन:
तो आप अपने आप को काफ्का समझते हैं ?
आप लेखन का मानक तय करेगें ?
मूढ़ मति पापी मनुष्य !
वो जमाना गया !
रोज फेसबुक पर दो कविता ठेलो
रात मूर्गे की गरम टांग के साथ
ब्लेण्डर के दो पाग बढ़ाओ
रात में जम के सेक्स
फिर सुबह
गरीबों की चिन्ता
देस समाज धरम करम की चिन्ता
यही सृजन का सार है
बाकी सब निराधार हा !
तथास्तु !
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