संसार भाषा है।
भाषा माया है।
भाषा ही भ्रम देती है बंधती है उसमें जो है ही नहीं
स्वयं के छद्म विवरण को विस्तार देती है संवाद का आभास रचती है
पिशाचिनी !
कड़वा सच तो यही है
कड़वा सच तो यही है
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