Thursday, October 12, 2017

पिशाचिनी

संसार
भाषा है।

भाषा
माया है।

भाषा ही
भ्रम देती है
बंधती है उसमें
जो है ही  नहीं

स्वयं के छद्म विवरण
को विस्तार देती है
संवाद का आभास रचती है

पिशाचिनी !

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