Monday, November 2, 2009

तुम्हें देखें !


हे प्रभु !
मुझे तो नहीं पता
लेकिन लोग कहते हैं कि
अब मैं कवि हो गया हूं !

मैं तो बिलकुल भी
ठीक से नहीं जानता कि
ये कविता क्या होती है
लिखी कैसे जाती है
लेकिन लोग कहते हैं कि
अच्छा लिखते हो तुम !

तो जो कुछ भी हो
असली मामला , वह छोड़ो !
बस, तुम
किसी दिन आराम से
आऒ
और थोड़ी मेहनत से
मुझे यह आदत सिखा दो कि
जब भी लिखूं
कोई भी वाद , विचार लिखूं
भाव लिखूं , अर्थ लिखूं
तो तुम्हारी तरफ ही मुंह रहे
और लोगों की तरफ पीठ !
लिखकर जब भी आंखें उठे
तुम्हें देखें !

9 comments:

  1. हे प्रभु, आके देख तो ज़रा
    ये महाशय कवियों जैसी भाषा बोल रहे है !

    बहुत खूब भाई, पूरे-पूरे लक्षण दिखाई दे रहे है, रचना की अंतिम कुछ लाइने बहुत सुन्दर है !

    ReplyDelete
  2. nice info.

    best regards.
    http://www.india-forums.tv/

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर कामना !!!

    समर्पण में ही सुख है. उससे ही माँगा जाय यदि कुछ माँगने की आवश्यकता हो.

    ReplyDelete
  4. बहुत खूब लिखा है.
    कवियो मे जो कुछ पाया जाता है मै तो भईया जी तुममे देख रहा हूँ
    सार्थक लेखन और तंज भी पिछली रचनाओ मे दिखलाई दिया है.
    बहुत बहुत बधाई और साधुवा

    ReplyDelete
  5. अंतिम शब्द को 'साधुवाद' पढा जाए

    ReplyDelete
  6. मन के दर्पण जैसी रचना है
    ---
    ---
    चाँद, बादल और शाम

    ReplyDelete
  7. कुछ पंक्तियाँ यहाँ पर श्रेष्ठतम रचना का अहसास कराती है.

    ReplyDelete