हे प्रभु !
मुझे तो नहीं पता
लेकिन लोग कहते हैं कि
अब मैं कवि हो गया हूं !
मैं तो बिलकुल भी
ठीक से नहीं जानता कि
ये कविता क्या होती है
लिखी कैसे जाती है
लेकिन लोग कहते हैं कि
अच्छा लिखते हो तुम !
तो जो कुछ भी हो
असली मामला , वह छोड़ो !
बस, तुम
किसी दिन आराम से
आऒ
और थोड़ी मेहनत से
मुझे यह आदत सिखा दो कि
जब भी लिखूं
कोई भी वाद , विचार लिखूं
भाव लिखूं , अर्थ लिखूं
तो तुम्हारी तरफ ही मुंह रहे
और लोगों की तरफ पीठ !
लिखकर जब भी आंखें उठे
तुम्हें देखें !
मुझे तो नहीं पता
लेकिन लोग कहते हैं कि
अब मैं कवि हो गया हूं !
मैं तो बिलकुल भी
ठीक से नहीं जानता कि
ये कविता क्या होती है
लिखी कैसे जाती है
लेकिन लोग कहते हैं कि
अच्छा लिखते हो तुम !
तो जो कुछ भी हो
असली मामला , वह छोड़ो !
बस, तुम
किसी दिन आराम से
आऒ
और थोड़ी मेहनत से
मुझे यह आदत सिखा दो कि
जब भी लिखूं
कोई भी वाद , विचार लिखूं
भाव लिखूं , अर्थ लिखूं
तो तुम्हारी तरफ ही मुंह रहे
और लोगों की तरफ पीठ !
लिखकर जब भी आंखें उठे
तुम्हें देखें !
हे प्रभु, आके देख तो ज़रा
ReplyDeleteये महाशय कवियों जैसी भाषा बोल रहे है !
बहुत खूब भाई, पूरे-पूरे लक्षण दिखाई दे रहे है, रचना की अंतिम कुछ लाइने बहुत सुन्दर है !
nice info.
ReplyDeletebest regards.
http://www.india-forums.tv/
अच्छा लिखते हो
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कामना !!!
ReplyDeleteसमर्पण में ही सुख है. उससे ही माँगा जाय यदि कुछ माँगने की आवश्यकता हो.
बहुत खूब लिखा है.
ReplyDeleteकवियो मे जो कुछ पाया जाता है मै तो भईया जी तुममे देख रहा हूँ
सार्थक लेखन और तंज भी पिछली रचनाओ मे दिखलाई दिया है.
बहुत बहुत बधाई और साधुवा
अंतिम शब्द को 'साधुवाद' पढा जाए
ReplyDeleteमन के दर्पण जैसी रचना है
ReplyDelete---
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चाँद, बादल और शाम
कुछ पंक्तियाँ यहाँ पर श्रेष्ठतम रचना का अहसास कराती है.
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