बेवकूफ किस्म का एकदम निठ्ठ्ल्ला लड़का हूँ. सोकर सुबह आठ बजे उठता हूँ. नौ बजे रूम से लगभग एक कोस दूर फैकल्टी के किसी बूढे से क्लासरूम में किसी नहाए-धोये चमचमाते प्रोफोसर के सामनें हाफता, आंख मींजता भरसत: मौजूद ही रहता हूँ । बीए का विद्यार्थी हूँ .भाषा विज्ञान लेकर तीसरे साल में हूँ बी एच यू से.कोई भी काम मेरा, मेरे ही द्वारा सही समय पर पूरा हो जाय यह तो बिलकुल आश्चर्य की बात हो सकती है . आज करै सो काल करै ,काल करै सो परसों.सबसे ज्यादा मजा आता है मुझे खूब चौचक, तानकर सोने में. अब तो जाड़ा भी आ रहा है . सोने का तो लुत्फ़ ही बढ जाता है. यह काम मुझे इतना प्रिय है की एक-दो घंटे की भी सिंटेक्स – मार्फाल्जी की लम्बी पढाई पर निकलने से पहले एक दो खर्राटे भिड़ा लेना पसंद करता हूँ.पढ़ाई के नाम पर आसपास के लोगों को बेवकूफ बनानें में खूब मजा आता है. हमेशा कमरे में ही घुसा रहता हूँ. लगता है की खूब पढ़ रहा हूँ. लेकिन जो करता हूँ वह तो मैं ही जानता हूँछुटपन से ही कापियों के पिछले पन्ने पर कुछ न कुछ ताना-पुरिया करते रहनें की आदत थी।समझदार लोगों ने ‘समझाने’-‘बुझाने’ का बहुत प्रयत्न किया लेकिन सब व्यर्थ गया.कुछ एक मास्टर साहब की गुप्त मदद से कुछ अपने जिद्दी स्वभाव से आदत बिगड़ती ही चली गयी. कैंसर और एड्स की दवा तो खोजी ही नहीं जा सकी है आजतक तो इस रोग का इलाज कहा से संभव हो पाता…..कुछ बहुत अच्छा बहुत अच्छे ढंग से तो कहने नहीं आता मुझे . बहुत उद्धत हूँ सो ज्ञान कहाँ !फिर भी थोडा बहुत तीर-तुक्का भिड़ा ही लेता हूँ.शेष स्वयं ही निरखें….
ताजुब होता है ....... अभिषेख ......... उसके बाद भी इतनी सारगर्भित कविताय्ने........
ReplyDeleteतभी आचार्य (गिरजेश जी) की नज़र आप पर पड़ी....