किसी लोककथा में फँसी रह गयी वेदना
हज़ारों वर्ष पुरानी एक प्रतिमा के मन की स्मृतियाँ
बादलों के पुराने जन्म
जीवाश्मों के स्वप्न
इनमें मेरी भाषा है
मेरे ख़त्म हो जाने के बाद बची रह गई
कई बार कहेगी वह मुझे
बिना मेरे जाने
बिना मेरे हुए
एक झरने में पानी बनूँगा मैं
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