#ध्यान कविता
बाहरी लोग,
दुनियां,
तमाम बातें,
अधूरी इच्छाऎं ,
बिछड़े हुये लोग,
लौट न सकें जहां वापस
वो छूट चुके घर !
सब धंसे रहते है ऐसे
जैसे मन
कोई मांस का मोटा सा चिथड़ा हो
और एक नुकीला तिरछा सा कांच
उसमें बिंधा पड़ा हो !
हल्की सी कसमसाहट पर भी
करक उठता हो तेज दर्द
No comments:
Post a Comment